15 मई 2015

दिल में बसा धूप का भय-हिन्दी कविता(dil mein basa dhoop ka bhay-hindi poem)


अपने घर में पेड़ पोद्ये
कुचलकर गैरों से
बहार लाने की आशा करते हैं।

बढ़ाते नहीं मनोबल
अपने ही साथियों का
गिरते हैं जमीन पर
उनसे उठाने की आशा करते हैं।

कहें दीपक बापू अक्ल के अंधे
कम नहीं है धरती पर
रात में रंगीन चश्म लगाकर
दिल में बसे धूप के भय से
बचने की आशा करते हैं।

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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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