29 अगस्त 2015

ज़माने की बात-हिन्दी कविता(zamane ki baat-hindi poem)

कहीं लोहे की टंकी में
खाने का सामान भरा
कहीं बर्तन खाली है।

कहीं ज़माने के लिये
कुर्बान होने वाले को कहते कातिल
कहीं लोग झूठे वादों
बजाते ताली हैं।

कहें दीपक बापू समंदर में
सीपियां नहीं ढूंढ सकते
 कभी वह लोग
जिन्होंने किनारे पर तैरती
मछली जाल में पा ली है।
..............
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

24 अगस्त 2015

यह सोचना मूर्खता है-हिन्दी कविता(yah sochna moorkhta hai-hindi poem)


सिंहासन पर बैठकर
कोई इतराये नहीं
यह सोचना मूर्खता है।

आकाश में उड़कर
कोई इतराये नहीं
यह सोचना मूर्खता है।

कहें दीपक बापू नारे और वादों से
बहकने वालो
नक्कार खाने में तूती न बजाओ
कोई तुम्हारी सुनेगा
यह सोचना मूर्खता है।
-------------
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

19 अगस्त 2015

तन्हाई की सोच-हिन्दी कविता(tanhai ki soch-hindi poem)

तन्हाई हमेशा
बुरे सपने की तरह
नहीं सताती है।

अक्ल के दरवाजे खोल कर देखो
भीड़ में शामिल लोगो को भी
तन्हा हो जाने की
चिंता खाती है।

कहें दीपक बापू संबंध का नाम
कोई भी लिख दो
तन्हाई में की गयी सोच
सभी के व्यवहार का
बहीखाता साथ लाती है
---------
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

13 अगस्त 2015

जंग के दीवाने-हिन्दी कविता(jang ke deewane-hindi poem)

पत्थर के मकान
कभी टूटते नहीं
अलबत्ता लोग दिलों में
अपने घर के हिस्से बांट जाते हैं।

आया सामान सबके लिये
अपना अपना कहकर
छांट जाते हैं।

कहें दीपक बापू जमीन पर
गिरे वह लोग जो हारे
बचे वह भी नहीं जो जीते
कोई बहादुर कोई कमजोर कहलाया
जंग के दीवाने
दिल जरूर बांट जाते हैं।
----------------
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

9 अगस्त 2015

भारतीय अध्यात्मिक ज्ञान और सांस्कृतिक भिन्नता का समन्वय-हिन्दी चिंत्तन लेख(bharatiya adhyatmik gyan aru sanskritik bhinnata ka samanvay-hindi thought article)

                              ‘हिन्दूशब्द अगर धर्म से जोड़ा जायेगा तो उसका संबंध केवल अध्यात्मिक ज्ञान तक ही सीमित रखना चाहिये। देश में विभिन्न प्रकार की संस्कृतियां और सभ्यतायें हैं और वह ‘‘हिन्दूशब्द के तले एक हैं तो उसका आधार केवल अध्यात्मिक ज्ञान है।  हम अगर हिन्दू शब्द को सभ्यता से जोड़ेंगे तो विश्व गुरु का सम्मान दिलाने वाला अध्यात्मिक ज्ञान का आधार अत्यंत सीमित हो जायेगा।  विदेशी धार्मिक विचाराधारायें अध्यात्म और सांसरिक विषयों को जोड़कर चलती हैं। वह स्वर्ग प्राप्ति का मार्ग सांसरिक विषयों में ही ढूंढती है जबकि भारतीय या हिन्दू अध्यात्मिक विचाराधारायें स्वर्ग को लेकर लालायित नहीं करतीं।  सकाम और साकार भक्ति के प्रवर्तक स्वर्ग की बात करते हैं तो निराकार के साथ ही निष्काम भक्ति वाले उसका अस्तित्व ही नहीं मानते।  भारतीय धर्म का आधार ग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता निष्काम भक्ति का संदेश देती है पर सकाम भक्ति पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाती। हर प्रकार की भक्ति के प्रति उसमें सापेक्ष भाव है।
                              अपनी बात कहने से पहले हमने भारतीय  अध्यात्म को लेकर हमने अपना रुख स्पष्ट इसलिये क्योंकि  कुछ पेशेवर संतों के विवादास्पद  लेकर अनेक धार्मिक विद्वानों ने अपनी राय जिस तरह रखी उससे सहमत होना संभव नहीं है। पहला प्रतिवाद तो इसी पर है कि संत को ऐसा या वैसा नहीं होना चाहिये।  संत कैसा हो? इसकी कोई स्पष्ट व्याख्या नहीं की जा सकती।  हम जानते हैं कि विभाजन के बाद सिंध और पंजाब से अनेक हिन्दू या भारतीय अध्यात्मिक विचारधारा वाले लोग भारत नामक बने नये देश में आये।  उनकी संस्कृति अलग थी पर अध्यात्मिक विचारधारा के प्रवाह ने उन्हें यहां के लिये प्रेरित किया।  संत को नाचना नहीं चाहिये जबकि सिंधियों के भगवत्रूप संत कंवर तो नाचते और गाते थे।  विभाजन के समय जब वह रेल से भारत आ रहे थे तो आतंकवादियों ने उन्हें घेर लिया। उनसे नाचने गाने को कहा और फिर मार डाला। आज भी सिंधी समाज उनको स्मरण करता है।  संत कंवर जी के  अध्यात्मिक ज्ञान की कभी चर्चा नहीं होती पर उनके भजन आज भी गाये जाते हैं।  उसी तरह पंजाबी संस्कृति भी अत्यंत मुखर है।  गुरुनानक देव जी ने हिन्दू धर्म के अध्यात्मिक ज्ञान की पुर्नस्थापना करने के साथ ही  अंधविश्वासों का जमकर विरोध किया था। इसका सीधा आशय यह है कि उनके मानने वालों का धर्म के नाम पर कर्मकांडों तथा अंधविश्वासों को स्वीकार न करने का अर्थ यह कदापि नहीं होता कि भारतीय अध्यात्मिक विचाराधारा से मोह भंग हो गया है।  गुरुनानक जी तथा सिखों के अन्य गुरु सादगी से जीवन बिताने की की बात कहते थे। पंजाबी संस्कृति मेें उनके अध्यात्म्कि ज्ञान का प्रभाव है पर इसके बावजूद सांसरिक विषयों में भी मुखरता देखी जा सकती है।
                              इसके अलावा भारत के दक्षिण, पूर्व, पश्चिम में भी संस्कृति और संस्कार प्रथक दिखते हैं।  हमने देखा है कि जब धार्मिक विद्वान हिन्दू धर्म की बात करते हैं तो केवल उत्तर तथा मध्य भारत कं संस्कृति संदर्भ उससे जोड़ देते हैं। इससे हिन्दू धर्म को लेकर अनेक संशय पैदा होते हैं।  सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि हमारे अध्यात्मिक ग्रंथोें में साधु या संत के लिये कोई एक रूप तय नहीं है। प्राचीन काल में तपस्वी, मुनि और ऋषियों ने अपना पूरा जीवन हमेशा ही एकांत स्थानों में बिताया जब कि आधुनिक संत हमेशा ही भीड़ में रहकर धर्म का व्यापार करते हैं। दूसरी बात यह कि हिन्दू या भारतीय अध्यात्मिक विचाराधारा ज्ञान के साथ विज्ञान पर भी जोर देती है।  इसलिये रूढ़िवादी तर्क देकर कथित धार्मिक विद्वान भ्रम न ही फैलायें तो अच्छा है।
-------------
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

4 अगस्त 2015

इंसानों की भीड़-हिन्दी कविता(insanon ki bheed-hindi poem)

नारों से समाज में
बदलाव वह कहां से
बदलाव लायेंगे।

सुविधाभोगी समाज
मन के बीमारों में कहां से
ताजगी का भाव लायेंगे।

कहें दीपक बापू झंडा उठाकर
इंसानों की भीड़
हांकते भेड़ के झुंड की तरह
संवेदनाओं के सौदागर
बुझे दिलों के अंदर
कहां से ताव लायेंगे।
------------
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh


संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

1 अगस्त 2015

फांसी की सजा पर सवाल बवाल और समाज का ताल बेताल-हिन्दी चिंत्तन लेख(fansi ke saja par swatl, bawal aur samaj ka tal betal-hindi thought article)

                               अभी भारत के प्रचार माध्यमों में एक फांसी का प्रकरण इस तरह छाया रहा गोया किसी युद्ध के समाचार हो। एक अपराधी को धारावाहिक बमविस्फोटों तथा सामूहिक हत्याकांड में 22 वर्ष तक जेल में रखने के बाद फांसी की सजा मिली।  कुछ लोग कह रहे हैं कि न्याय में देरी हुई है पर हमारा मानना सब दुरस्त हुआ है। न्यायपालिक पर विलंब का दायित्व डालने वाले जरा उस अपराधी को मिले दोहरे दंड के बारे में सोचें।  उसने अपने जीवन की सर्वश्रेष्ठ आयु सीमा जेल में तिल तिल कर सड़ते हुए गुजारी। अगर फांसी की सजा माफ होकर आजीवन कारावास में बदलती जो संभवत वह रिहा भी हो जाता। मगर नहीं, 22 साल तक अपने अपराध का बोझ वह कारावास में गुजारता रहा फिर पाई मौत।  यह दोहरा दंड है इस पर अफसोस करने वाले नहीं जानते सारी सुविधायें मिल जायें तो भी स्वतंत्रता पूर्वक विचरण में रुकावट आदमी के मन को सबसे ज्यादा त्रास देती है। भारतीय न्याय तथा प्रशासनिक व्यवस्था पर दोष ढूंढने की बजाय उसमें गुण भी ढूंढने चाहिये।

                              फांसी के धारावाहिक प्रसारण पर प्रचार माध्यमों ने विज्ञापन की राशि कितनी कमाई होगी पता नहीं।  फांसी प्राप्त अपराधी की प्रचार माध्यमों में खलनायक की छवि बनाकर पेश करना सहज है वह जानता था।  इसलिये फांसी की सजा से  एक दिन पहले उसने अपने पास खड़े प्रहरी से कहा मेरी फांसी का राजनीतिक उपयोग हुआ।
                              उसे जाकर कौन बताता कि उसकी फांसी का राजनीतिक से अधिक व्यवसायिक उपयोग हुआ। सच बात तो यह है कि उसका अपराध ऐसा था कि नैतिक आधार खत्म हो गया था वरना वह इन प्रचार माध्यमों से अपने नाम के सहारे कमाई करने के एवज में पैसा भी मांग सकता था।
                              राह चलते हुए एक आदमी को हमने यह कहते सुना कि कल फांसी प्रकरण के प्रसारण से टीवी समाचार चैनलों ने बोर कर दिया। दूसरी कोई खबर ही नहीं सुना रहे थे।
                              दूसरे ने कहा कि हमने तो अब हिन्दी समाचार चैनल देखना ही कम कर दिया है।  सभी अपने विज्ञापन देने वालों की खबरे चला रहे हें। किसी को देश से कोई मतलब नहीं है।
                              हम पहले से प्रचार माध्यमों के बारे में यह कहते आ रहे हैं कि वह दर्शकों की चिंता नहीं करते। वह जितने दर्शक जुटा रहे हैं उनकी संख्या होने पर भी  आबादी की दृष्टि से बृहद इस देश में स्तर से कम भी हो सकती है।  आजकल हम देख रहे हैं कोई भी अब टीवी समाचार से स्थापित किसी मुद्दे पर उस तरह सार्वजनिक चर्चा पहले के मुकाबले कम ही होती जा रही है। अनेक पुराने समाचार पढ़ने और सुनने वाले नशेड़ी इन प्रचार माध्यमों से निराश हो गये है।
                              प्रगतिशील और जनवादी बुद्धिजीवियों के प्रभाव में प्रचार माध्यमों के पेशेवर कर्मी अभी भी चल रहे हैं।  धर्म, जाति, भाषा तथा क्षेत्र के विषय में उन परंपरागत सिद्धंातों अभी हमारे प्रचार तथा विचार विमर्श की र्शैली मुक्त नहंी हो पायी जो बोरियत पैदा करती है।  एक व्यक्ति को उकसाती है दूसरे का डराती है। सामाजिक द्वंद्वों के बीच समाचार तथा बहसों का चुनाव व्यवसायिकता के लिये ठीक है पर जब अपनी निष्कर्म भाव की सक्रियता से समाज में एक परिवर्तन लाने की इच्छा हो तब सबसे पहले परंपरागत धारा से स्वयं को बाहर लाना चाहिये।
                               विज्ञापन से चलने वाले इन हिन्दी समाचार चैनलों से निष्काम भाव की आशा करना तो व्यर्थ ही है इसलिये परंपरागत प्रचार और विचारधारा के साथ उनका साथ रहेगा।  मगर यह भी सच यह है कि अभिव्यक्ति की प्रगतिशील और जनवादी शैली अब बोरियत पैदा करने वाली हो गयी है। इससे प्रथक होकर एक स्वतंत्र आक्रामक शैली होने पर ही प्रचारक और विचारक की छवि अब समाज में बन सकती है पर सवाल यह है कि अकुशल प्रबंध के शिकार इन व्यवसायिक प्रचार घरानों से नये प्रयोग की आशा नहीं की जा सकती।
                              सभ्य समाज में क्या फांसी की सजा होना चाहिये? जवाब यह है कि अगर फांसी की सजा नहीं होगी तो कुछ सुविधा भोगी लोग इसका विरोधकर अपनी छवि नहीं बना पायेंगे।      हमारे देश के हिन्दल प्रचार माध्यमों में कार्यरत पेशेवर विद्वान  सामान्य जन से प्रथक सभ्य दिखने के लिये फासीवाद के विरोध का आश्रय नहीं ले पायेंगे।
                              सभ्य समाज में क्या फांसी की सजा जरूरी है? जवाब यह कि समाज को सभ्य रखने के लिये फांसी की सजा जरूरी है।

---------------
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh


संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

संबद्ध विशिष्ट पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकाएँ

वर्डप्रेस की संबद्ध अन्य पत्रिकायें