4 अगस्त 2015

इंसानों की भीड़-हिन्दी कविता(insanon ki bheed-hindi poem)

नारों से समाज में
बदलाव वह कहां से
बदलाव लायेंगे।

सुविधाभोगी समाज
मन के बीमारों में कहां से
ताजगी का भाव लायेंगे।

कहें दीपक बापू झंडा उठाकर
इंसानों की भीड़
हांकते भेड़ के झुंड की तरह
संवेदनाओं के सौदागर
बुझे दिलों के अंदर
कहां से ताव लायेंगे।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh


संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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