28 जुलाई 2015

सिंध प्रांत पाकिस्तान के हाथ से निकालने का अभियान चलायें(sindh provinces pakistan ke hath se niklane ka abhiyan chalayen)

                              गुरदासपुर में हमले से भारत में भारी नाराजगी का वातावरण है अनेक सामरिक विशेषज्ञ मानते हैं कि पाकिस्तान का सिंध प्रांत ऐसा है जहां अगर सही रणनीति अपनायी जाये तो भारत उस पर नियंत्रण कर सकता है। पाकिस्तान के सिंधी भाषी मूलतः वहां के पंजाबी भाषियों से सांस्कृतिक दृष्टि से एकरूप हैं पर दोनों के बीच भारी वैमनस्य है। इसका कारण यह है कि पंजाब चूंकि हिमालय के निकट इसलिये वहां से नदियां बहकर सिंध जाती हैं।  पंजाब में उनके जल का इतना दोहन हो जाता है कि सिंध पहंुचते पहुंचते उनमें जल कम रह जाता है। दूसरी बात यह कि प्रभावशाली पंजाबियों ने पाकिस्तान तो ले लिया पर लाहौर से अधिक कराची में भारत से गये उर्दू भाषियों को बसाकर वहां सिंधियों के लिये एक नया विरोधी समुदाय स्थापित किया।  इतना ही नहीं भारत से गये जितने भी अपराधी हैं वह सब कराची में जाकर रहते हैं। कभी लाहौर या मुल्तान में उनका निवास नहीं सुना जाता।
                              आज भी प्रभावशाली पंजाबी समुदाय सिंध, ब्लूचिस्तान और सीमा प्रांत को अपने अनुचर की तरह मानता है।  हम कहते हैं जरूर है कि भारत में कोई स्वयं को पहले भारतीय नहीं मानता पर सच यह है कि भारत शब्द इतना प्राचीन है कि जनमानस में इस कदर बसा है कि उसे स्वयं को भारतीय कहने की आवश्यकता नहीं है। पाकिस्तान की स्थिति अलग हैं।  वहां के जनमानस में भारत शब्द से घृणा भरी गयी है। समस्या यह है कि पाकिस्तान के प्रति वहां कोई वफादार बन नहीं सकता।  ऐसे में पाकिस्तान मानसिक रूप से भी एक विघटित राष्ट्र है।
                              हमारे भारत के रणनीतिकारों को चाहिये कि वह सिंध में पाकिस्तान के विरुद्ध चल रहे आंदोलनों को जीवंत करें। वहां जियो सिंध आंदोलन चलता रहा है जिसके शीर्ष नेता हमेशा भारत की तरफ सहायता के लिये ताकते रहे हैं।  अगर सिंध पाकिस्तान के लिये समस्या बना तो वह आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से लड़खड़ा जायेगा।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh


संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

25 जुलाई 2015

अध्यात्मिक दृढ़ता के अभाव में मनुष्य टूटता ही है-हिन्दी चिंत्तन लेख(adhyatmik dridhta ke abhav mein tootta hee hai-hindi thought article)


                     कभी भारतीय लोग अपने परिश्रम, लगन तथा धार्मिक दृढ़ता की वजह से पूरे विश्व में जाने जाते थे पर अब स्थिति बदल गयी है हमारे देश में सामाजिक, आर्थिक तथा वैचारिक संस्थाओं की प्रमाणिक सक्रियता के अभाव में आत्महत्या करने वालों की संख्या बढ़ रही है।  आज से लगभग बीस वर्ष पूर्व जब पश्चिमी जगत में आत्महत्या करने की अधिक घटनाओं के बारे में पढ़ते थे तो आश्चर्य होता था। इस लेखक ने एक  समाचार पत्र में संपादक के नाम पत्र में लिखा था कि भारत में अध्यात्मिक रूप से परिपक्वता है इसलिये यहां जापान की तर हाराकिरी की परंपरा कभी नहीं बन पायी।  अब भारत में आत्महत्या का वह दौर चल रहा है जिसकी कल्पना कभी की नहीं जा सकती थी।  अब हमारे देश का समाज आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक रूप ये पाश्चात्य रंग में डूब चुका है तब उसमें वहां के गुणों के साथ दोषों का आना भी स्वाभाविक है।
                              कथित विकास के चलते जहां बौद्धिक तीव्रता का गुण आने की बात कही जाती है पर उसमें उपभोग के विषय की प्रधानता है और चिंत्तन का नितांत अभाव दिखता है। किसी नयी चीज का उपभोग करने की प्रवृत्ति तो बढ़ी है पर चरित्र निर्माण का विचार तक किसी को नहीं आता।  बाहर चक्षु नये नये सामान तलाश रहे हैं पर अंतर्मन में खालीपन रहता है। भीड़ में लोग अकेले हैं।  अपने दैहिक सामर्थ्य दिखाने की सभी को ललक है पर मानसिक शक्ति का अभाव दिखता है।  भौतिकता से निंरतर योग और अध्यात्म से वियोग किसी को ज्यादा समय तक जीवन में खड़ा नहीं रहने देता। यही अंतिम सत्य है कि अध्यात्मिक दृढ़ता के अभाव में मनुष्य टूटता ही है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

19 जुलाई 2015

भजन या सत्संग से मिले अमृत से ही तनाव के विष से मुक्ति-हिन्दी चिंत्तन लेख(BHAJAN YA SATSANG SE MILE AMRIT SE MUKTI-HINDI THOUGHT ARTICLE)


                              अंग्रेजी संस्कारों ने हमारे देश में रविवार को सामान्य अवकाश का दिन बना दिया है। रविवार के दिन सुबह भजन या अध्यात्मिक सत्संग प्रसारित करने वाले टीवी चैनल खोलकर देखें तो वास्तव में शांति मिलती है। चैनल ढूंढने  के लिये रिमोट दबाते समय अगर कोई समाचार चैनल लग जाये तो दिमाग में तनाव आने लगता है-उसमें वही भयानक खबरें चलती हैं जो एक दिन पहले दिख चुकी हैं- और जब तक मनपसंद चैनल तक पहुंचे तक वह बना ही रहता है।  बाद में भजन या सत्संग के आनंद से मिले अमृत पर ही उस तनाव का निवारण हो पता है।
                              वैसे तो भारतीय अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार सभी दिन हरि के माने जाते हैं पर अंग्रेजों ने गुलामी से मुक्ति देते समय शिक्षा, राजकीय प्रबंध व्यवस्था तथा रहन सहन के साथ ही भक्ति में भी अपने सिद्धांत सौंपे जिसे हमारे सुविधाभोगी शिखर पुरुषों से सहजता से स्वीकार कर लिय।  जैसा कि नियम है शिखर पुरुषों  का अनुसरण  समाज करता ही है।  हमें याद है पहले अनेक जगह मंगलवार को दुकानें बंद रहती थीं।  वणिक परिवार का होने के नाते मंगलवार हमारा प्रिय दिन था।  बाद में चाकरी में रोटी की तलाश शुरु हुई तो रविवार का दिन ही अध्यात्मिक के लिये मिलने लगा।  इधर हमारे धार्मिक शिखर पुरुषों-उनके अध्यात्मिक ज्ञानी होने का भ्रम कतई न पालें-ने जब देखा कि उनके पास आने वाली भीड़ में नौकरी पेशा तथा बड़ा व्यवसाय या उद्योग चलाने वाले ऐसे लोगों की संख्या अधिक है जो रविवार के दिन ही  अवकाश लेते हैं तो उन्होंने उसे ही मुख्य दिवस बना दिया।
                              इधर प्रचार माध्यम भी रविवार के दिन सुपर संडेबनाने का प्रयास करते हैं और उनके स्वामियों के प्रायोजित अनेक संगठन इसी दिन कोई प्रदर्शन आदि कर उनके लिये प्रचार सामग्री बनाते हैं या फिर कोई बंदा सनसनीखेज बयान देता है जिससे उन्हें सारा दिन प्रचारित कर बहस चलाने का अवसर मिल जाता है।  अन्ना आंदोलन और चुनाव के दौरान इन प्रचार माध्यमों को ऐसे अवसर खूब मिले पर अब लगता है कि अब शायद ऐसा नहीं हो पा रहा है। फिर भी महिलाओं के प्रति धटित अपराध अथवा धार्मिक नेताओं के बयानों से यह अपने विज्ञापन प्रसारण के बीच सनसनीखेज सामग्री निकालने का प्रयास कर रहे हैं। यह अलग बात कि जम नहीं पा रहा है।
                              इधर बाहुबली फिल्म की सफलता के अनेक अर्थ निकाले जा रहे हैं।  यह अवसर भी प्रचार माध्यम स्वयं देते है-यह पता नहीं कि वह अनजाने में करते हैं या जानबुझकर-जब बॉलीवुड के सुल्तान और बादशाह से बाहूबली फिल्म के नायक की चर्चा कर रहे हैं। तब अनेक लोगों के दिमाग में यह बात आती तो है कि अक्षय कुमार, अजय देवगन, सन्नी देयोल, अक्षय खन्ना और सुनील शेट्टी जैसे अभिनेता भी हैं जो फिल्म उद्योग को भारी राजस्व कमा कर देते हैं।  अक्षय कुमार के लिये इनके पास कोई उपमा ही नहीं होती।  यह अभिनेता अनेक बार आपस में काम कर चुके हैं पर उसकी चर्चा इतने महत्व की नहीं होती जैसी सुल्तान और बादशाह के आपस में अभिवादन करने पर ही हो जाती है।  अंततः फिल्म और टीवी भावनाओं पर ही अपना बाज़ार चमकाते हैं और इससे जुड़े लोगों का पता होना चाहिये कि उनके इस तरीके पर समाज में जागरुक लोग रेखांकित करते हैं।  सभी तो उनके मानसिक गुलाम नहीं हो सकते। हम ऐसा नहीं सोचते पर ऐसा सोचने वाले लोगों की बातें सुनी हैं इसलिये इस विशिष्ट रविवारीय लेख में लिख रहे हैं।
हरिओम, जय श्रीराम, जय श्री कृष्ण
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

14 जुलाई 2015

असल के भी नकली खेल-हिन्दी कविता(asal ke bhee nakali khel-hindi poem)

कहीं खेल में बेईमानी
कहीं बेईमानी के भी
खेल होते हैं।

कहीं खिलाड़ी लगा जुआ में
कहीं जुआरी लगा खेल में
दोनों में बहुत सारे आपसी
घालमेल होते हैं।

कहें दीपक बापू बरसों गंवाये
खेल देखते हुए
पता लगा जुआ देख रहे थे,
जीत हार का फैसला
पहले तय हुआ देख रहे थे,
पैसे की माया है
असल के भी नकली खेल होते हैं
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

8 जुलाई 2015

दिग्भ्रमित लोग-हिन्दी कविता(digbhramit log-hindi poem)

समाज सेवा के व्यापार में
वही शामिल हो जाते
जो  खाये पीये अघाये हैं।

मुफ्त में पायी हर सुविधा
ज़माने का दर्द से अनजान
हमदर्द का बिल्ला लगाये हैं।

कहें दीपक बापू तीखी जुबान से
शब्द दमदार नहीं हो जाते,
दबंग की बेढंग अदाओं पर
तारीफ से चमकदार नहीं हो पाते,
दिग्भ्रमित हो जाते चालाक लोग भी
चाटुकारों की भीड़ से
गोया अपने महल
गरीबों के लिये उन्होंने बनाये हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

3 जुलाई 2015

खुशफहमी-हिन्दी कविता(khushfahami-hindi poem)


लोग पड़ौस में करते
संवेदना की तलाश
घर में मरी पड़ी है।

हमदर्दी की आस करते
उस मशहूर सूरत से
जो पैसे के फ्रेम में जड़ी है।

कहें दीपक बापू खुशफहमी में
जीते हैं लोग
किसके पास समय और चाहत है
जो देखे उनके हाथ में बंधी
सोने या लोहे की घड़ी है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
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