3 जुलाई 2015

खुशफहमी-हिन्दी कविता(khushfahami-hindi poem)


लोग पड़ौस में करते
संवेदना की तलाश
घर में मरी पड़ी है।

हमदर्दी की आस करते
उस मशहूर सूरत से
जो पैसे के फ्रेम में जड़ी है।

कहें दीपक बापू खुशफहमी में
जीते हैं लोग
किसके पास समय और चाहत है
जो देखे उनके हाथ में बंधी
सोने या लोहे की घड़ी है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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