8 जुलाई 2015

दिग्भ्रमित लोग-हिन्दी कविता(digbhramit log-hindi poem)

समाज सेवा के व्यापार में
वही शामिल हो जाते
जो  खाये पीये अघाये हैं।

मुफ्त में पायी हर सुविधा
ज़माने का दर्द से अनजान
हमदर्द का बिल्ला लगाये हैं।

कहें दीपक बापू तीखी जुबान से
शब्द दमदार नहीं हो जाते,
दबंग की बेढंग अदाओं पर
तारीफ से चमकदार नहीं हो पाते,
दिग्भ्रमित हो जाते चालाक लोग भी
चाटुकारों की भीड़ से
गोया अपने महल
गरीबों के लिये उन्होंने बनाये हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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