कभी भारतीय लोग अपने परिश्रम, लगन तथा धार्मिक दृढ़ता की वजह से पूरे विश्व में जाने जाते थे पर अब स्थिति
बदल गयी है हमारे देश में सामाजिक, आर्थिक तथा वैचारिक संस्थाओं की प्रमाणिक सक्रियता के अभाव में आत्महत्या
करने वालों की संख्या बढ़ रही है। आज से
लगभग बीस वर्ष पूर्व जब पश्चिमी जगत में आत्महत्या करने की अधिक घटनाओं के बारे
में पढ़ते थे तो आश्चर्य होता था। इस लेखक ने एक
समाचार पत्र में संपादक के नाम पत्र में लिखा था कि भारत में अध्यात्मिक
रूप से परिपक्वता है इसलिये यहां जापान की तर हाराकिरी की परंपरा कभी नहीं बन
पायी। अब भारत में आत्महत्या का वह दौर चल
रहा है जिसकी कल्पना कभी की नहीं जा सकती थी।
अब हमारे देश का समाज आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक रूप ये पाश्चात्य रंग में डूब चुका है तब उसमें
वहां के गुणों के साथ दोषों का आना भी स्वाभाविक है।
कथित विकास के चलते जहां बौद्धिक तीव्रता का गुण आने की बात कही जाती है पर
उसमें उपभोग के विषय की प्रधानता है और चिंत्तन का नितांत अभाव दिखता है। किसी नयी
चीज का उपभोग करने की प्रवृत्ति तो बढ़ी है पर चरित्र निर्माण का विचार तक किसी को
नहीं आता। बाहर चक्षु नये नये सामान तलाश
रहे हैं पर अंतर्मन में खालीपन रहता है। भीड़ में लोग अकेले हैं। अपने दैहिक सामर्थ्य दिखाने की सभी को ललक है
पर मानसिक शक्ति का अभाव दिखता है।
भौतिकता से निंरतर योग और अध्यात्म से वियोग किसी को ज्यादा समय तक जीवन
में खड़ा नहीं रहने देता। यही अंतिम सत्य है कि अध्यात्मिक दृढ़ता के अभाव में
मनुष्य टूटता ही है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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