23 मार्च 2011

बाज़ार का शब्द व्यापार-हास्य कविता (bazar ka shabda vyapar-hasya kavita)

कवि ने प्रकाशक से पूछा
‘बार बार कहते हो कि
सैक्सी कविता और कहानियां लिखकर लाया करो,
वरना यहां आकर मेरा वक्त न जाया करो,
पहले यह तो बताओ कि सैक्सी कविता और कहानियां
किस तरह लिखकर लायीं जाये
ताकि वह बाज़ार में बेचकर बड़ी रकम पायी जाये,
श्रृंगार रस हो या विरह
कितनी कवितायें लिखकर तुम्हारे पास आया,
पर हमेशा अपने सामने टूटती आस को पाया।
सुनकर प्रकाशक ने कहा
‘‘कविताओं में गालियां लिखा करो,
नायिका के सौंदर्य पर लिखो खुलकर शब्द
मां बहिन की चर्चा व्यंजना विधा करते दिखा करो,
कहानियों में नायक की छाती पर कमीज न हो,
नायिका को घुटने के नीचे कपड़े पहनने तमीज न हो,
भई,
सौंदर्य का बोध अब मेकअप से हो जाता है,
आदमी अब चिंतन नहीं करता
कागज पर पढ़ते पढ़ते
पर्दे पर दिखे रूप में खो जाता है,
प्र्रेम मिलन में श्रृंगार रस
विरह में करुणा रस की धारा बहने की
अनुभूति अंतर्मन में पले
यह अब नहीं चलता,
बहती दिखे जमीन पर रचना
यही सभी के मन में पलता,
कभी हास्य भी लिखा करो
मां की बहिन की बात करते भी दिखा करो,
शब्दों का व्यापार अब
अनुभूति कराने से नहीं होता,
लिखो चिल्लाते हुए शब्द
जिसे पढ़कर आदमी कभी हंसता कभी रोता,
खुद को खुश करने के लिये लिखोगे तो
बाज़ार ने न करना आस,
हमारे हिसाब से चलो तो हो जाओगे पास।’’
----------------------



लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior

18 मार्च 2011

होली और दिवाली-व्यंग्य कविता (holi aur diwali-vyangya kavita)

वादों की फुलझड़ी जलाकर वह
रोज लोगों के साथ दिवाली मनाते हैं,
भूल जाते हैं अगले ही क्षण
होली का मजाक भी इस तरह बनाते हैं।
बाज़ार के सौदागरों ने कैद कर लिये हैं चेहरे
अपने दौलत के कैमरे में
जो उन्हें ही दिवाली और होली के पर्व मनाते दिखाते
आम इंसान तो है एक बेजान चीज
खुशी में हंसना
गम में रोना
अब प्रायोजित हो गया है
तयशुदा चेहरे ही हर मौके पर
अपनी अदाकारी करते नज़र आते हैं।
-----------------------
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior

3 मार्च 2011

कोई भी शैतान हो सकता है-हिन्दी कविता (nari aur shaitan-hindi kavita)

नारियों की देह को खाने के लिये
भेड़िया किसी भी भेष में हो सकता है
शिक्षक,
इंजीनियर,
समाज सेवक,
साहित्यकार,
राजनीतिक नेता,
प्रबंधक,
वैज्ञानिक
और दूसरे किसी रूप में भी
रचा बसा हो सकता है।

सबके सामने बैठकर
संतों की तरह तो
हर कोई उपदेशक हो जाता है,
मगर एकांत में किसी स्त्री के आते ही
कामाग्नि में जल जाती हैं
सब उपाधियां और पद की गरिमा,
कोई भी भीड़ में भेड़ की तरह चलने वाला
अकेले में नारी रूप देखकर
अपना इंसानी रूप त्यागकर
शैतान हो सकता है।
-------------

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

संबद्ध विशिष्ट पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकाएँ

वर्डप्रेस की संबद्ध अन्य पत्रिकायें