22 अप्रैल 2017

महल में बाहर दरबान के हाथ राजा का असला है। यही उसकी अकड़ का मसला है-छोटी हिन्दी मुक्त कवितायें (Sum Short Hindi Poem)

तस्वीर से दिल बहलाना

बुरा नहीं

गर दिल लगाते नहीं।

श्रृंगार रस में बहना बुरा नहीं

गर सपने जगाते नहीं।

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जगह बदल बदलकर

देख रहे हैं कहीं

अपना अस्तित्व मिल जाये।

शायद कोई 

नया शब्द फूल खिल जाये।

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महल में बाहर

दरबान के हाथ

राजा का असला है।

यही उसकी

अकड़ का मसला है।

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दिल पर लगे घाव

मजबूरी में

दर्द पीना था।

हाथ में कलम थी

कविता से ही जीना था।

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जब कातिलों के कसीदे

रिसालों में चाव से पढ़े जाते हैं।

तब शिकारों के कसूर

बड़े ताव से गढ़े जाते हैं।


हर चेहरे पर नकाब

किसे बेनकाब कर पहचाने।

नीयत बद मिलने का डर

 इसलिये रहते अनजाने।


मृफ्त में खाना है

तौंद भी महल में बसाना है।

बस एक बार

चुनाव जीत जाना है।

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अमन की बहस

जंग में बदल जाती है।

शब्दों से धवल पट्टिका

काले रंग में बदल जाती है।

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हम नहीं जानते

कौन पीठ पर वार करेगा।

यह भी मानते

कोई तो है

जो हमारी नाव पार करेगा।

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दोस्तों से वफा की

नाउम्मीदी से डरे हुए हम।

यह कम नहीं

टूटे हौंसलों से

इतना भी लड़ जाते हम

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बोलें तो बवाल मचेगा

मौन से सवाल बचेगा।

ढूंढते मसले का मंच

जहां शब्द ताल नचेगा।

-


नट के हाथ में डोर

इंसानी पुतलों को 

अपना खेल दिखाना है।

अपनी अदाओं से

गुलामी ही सिखाना है।

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चेहरा उनका सुंदर 

पर हम नीयत नहीं पढ़ पाते।

शब्द भी अद्भुत

पर उनके अर्थ नहीं गढ़ पाते।

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तस्वीर से ही

उनकी आंखें झांक लेती हैं।

तसल्ली है

दिल में प्रेमभाव हांक देती हैं।

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मंडी में बड़े पैमाने की

चीज का दाम कम होता है।

इंसानों की भी भीड़ जमा

भेड़ जैसा मोल देख

दिल क्यों नम होतो है।

पुराने काम

नये नारों के साथ

बदस्तूर जारी है।

बदलाव से डरें नहीं

बस नये चेहरे की बारी है।

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हंसी पलों में भी

अब लोग साथ

नहीं निभाते हैं।

दूसरे के दर्द ही

अब सभी को भाते हैं।

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गिरेबान में झांककर

नहीं देखते 

अपने काम का किस्सा।

बाज़ार में सजाते नसीहतें

मांगते दाम का हिस्सा।

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अभी लोगों के सामने

सेवक की तरह

हाथ फैलाना है।

फिर तो स्वामी के सामने

लोगों को ही हाथ फैलाना है।

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दिखाने के लिये

दबंगों के बीच

कायदे की जंग है।

सच यह कि

सभी की नीयत में

फायदे के अलग रंग हैं।

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