25 फ़रवरी 2009

झूठे सपने ही बाजार में बिकते-व्यंग्य शायरी

जंगल में ढूंढने पर कहां मिलते
शहरों में कई जगह अब तो
बड़ी इमारतों के बाहर पत्थर के शेर दिखते।
पत्थरों के शहर अब भला फूल कहां खिलते
इसलिये ही बंद कमरों में कैक्टस पर लिखते।
बंद है लोगों की सोच के दरवाजे
कड़वा हो मीठा सच के पारखी नहीं मिलते
इसलिये कभी पूरे न हो सकें वह ख्वाब
और झूठे सपने ही बाजार में बिकते
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सच और ख्वाब में
बहुत फर्क नजर आता है
सच के साथ होने का अहसास
दिल को नहीं होता
ख्वाब कभी सच न भी हो
सोच कर ही दिल बहल जाता है

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यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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18 फ़रवरी 2009

हिंदी ब्लाग से ही सामाजिक परिवर्तन संभव-आलेख

अंतर्जाल के ब्लाग पर सामाजिक आंदोलन और जागरुकता के लिये प्रयास कोई अब नयी बात नहीं है। कुछ लोगों ने अभी हाल ही में वेलंटाईन डे के पहले तक इंटरनेट पर चले विवाद पर लिखे गये पाठों को देखकर यही निष्कर्ष निकाला है कि आने वाले समय में भारत के 4.2 करोड़ इंटरनेट प्रयोक्ता सड़क पर जाकर नारेबाजी करते हुए लाठी झेलने की बजाय अपने घरों पर कंप्यूटर और लैपटाप पर आंदोलन करना ठीक समझ रहे हैं। यह दिलचस्प है। ऐसे में एक प्रश्न जरूर उठता है कि आखिर इस देश में कौनसी भाषा के ब्लाग पर हम ऐसी आशा कर रहे हैं? यकीनन वह हिंदी नहीं है बल्कि अंग्रेजी है और जब देश में सामाजिक आंदोलन और जागरुकता के लिये प्रयासों की आवश्यकता है तो उसके लिये सबसे महत्वपूर्ण भूमिका हिंदी के ब्लाग की होना चाहिये-बिना उनके यह कल्पना करना कठिन है।
अभी समाचार पत्र पत्रिकायें जिन ब्लाग का नाम अखबारों के दे रहे हैं वह अंग्रेजी के हैं। विवादास्पद विषय पर अखबार में नाम आने से उनको खोलकर पढ़ने वाले बहुत आते हैं-सामान्य रूप से आने पर ब्लाग में कोई दिलचस्पी नहीं लेता। समाचार पत्र पत्रिकाओं में नाम आने से वैलंटाईन डे से पूर्व तक चले विवाद पर जो पाठ अंग्रेजी ब्लाग पर लिखे गये उनको पाठक मिलना स्वाभाविक था पर हिंदी के ब्लाग के बिना किसी भी आंदोलन या जागरुकता के प्रयास में सफलता नहीं मिल सकती।


इस विवाद पर हिंदी के ब्लाग पर भी जमकर लिखा गया। हिंदी ब्लाग लेखकों ने उन अंग्रंेजी ब्लाग के लिंक दिये और इसमें संदेह नहीं कि उनको पाठक दिलवाने में योगदान दिया। नारी स्वातंत्र्य पर एक फोरम अंतर्जाल पर बनाया जिस पर 14 फरवरी वैलंटाईन डे पर दस हजार से अधिक सदस्य शामिल हुए। कुछ वेबसाईट भी जबरदस्त हिट ले रहीं थी पर यह सभी अंग्रेजी भाषा से सुसज्जित समाज का ही हिस्सा था। आम भारतीय जिसकी भाषा हिंदी है उसका न तो वैंलंटाईन डे से लेना देना था न नारी स्वातंत्र्य पर चल रही सतही बहस से। फिर भी समाचार पत्र पत्रिकाओं ने उस विवाद को महत्वपूर्ण स्थान दिया। ऐसे में हिंदी ब्लाग पर चल रही बहस का कहीं जिक्र नहीं आया जो कि इस बात का प्रमाण है प्रचार माध्यम उसकी अनदेखी कर रहे हैं। हालांकि हिंदी ब्लाग लेखकों के दोनों पक्षों ने इस विषय पर बहुत अच्छा लिखा पर कुछ ब्लाग लेखकों के निजी आक्षेपों ने उनके पाठ को कमजोर बना दिया।
हमारा यहां उद्देश्य वैलंटाईन डे पर हुई बहस के निष्कर्षों पर विचार करना नहीं है बल्कि सामाजिक आंदोलन और जागरुकता में हिंदी ब्लाग के संभावित योगदान का आंकलन करना है। यह बात इस लेखक द्वारा हिंदी क्षेत्र के होने के कारण नहीं लिखी जा रही कि भारत में हिंदी ब्लाग की ही किसी सामाजिक परिवर्तन में भूमिका हो सकती है। अगर अंग्रेजी ब्लाग की भूमिका हुई तो वह हिंदी समाचार पत्र पत्रिकाओं में उनके पाठों के स्थान मिलने का कारण होगी न कि अपने कारण। यह हैरानी की बात है कि ब्लाग का प्रचार तो सभी कर रहे हैं पर इस सत्य से मूंह छिपा रहे हैं कि वह अंग्रेजी भाषा के ब्लाग के बारे में लिख रहे हैं न कि हिंदी के बारे में। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि अंग्रेजी के मोह के कारण प्रचार चाहने वाले प्रतिष्ठित लोग अंग्रेजी के ब्लाग पर ही अपना नाम देखना चाहते हैं जैसे कि बी.बी.सी. लंंदन के समाचारों में देखते हैं। जहां तक हिट का प्रश्न है तो अभी अंतर्जाल पर कई तरह के भ्रम हैं कि क्या वाकई अंग्रंजी ब्लाग लेखकों के उतने पाठक हैं जितने कि वह दावा करते हैं। अंग्रेजी के एक ब्लाग लेखक ने अपनी एक टिप्पणी में लिखा था कि अंग्रेजी में वही ब्लाग हिट ले रहे हैं जो प्रायोजित हैं पर जो सामान्य लोगों के ब्लाग हैं उनकी कमोबेश स्थिति हिंदी जैसी है। सच क्या है कोई नहीं जानता। वैसे भी किसी एक के दावे पर यकीन करना ठीक नहीं है।

फिर यह ंअंतर्जाल है। अंग्रेजी का परचम फहरा रहा है यह सही है पर भारतीय विषयों पर हिंदी में लिखा गया है तो उसे पाठक नहीं मिलेंगे यह भी भ्रम है। हां, इतना अवश्य है कि उच्च स्तर पर अंग्रेजी भाषा के लोगों का वर्चस्व है और वह अपने ब्लाग हिट बना लेते हैं पर इसके लिये उनकी तकनीकी कौशल या चतुर प्रबंधन को ही श्रेय दिया जा सकता है न कि पाठों को। यह हैरान करने वाली बात है कि अगर अंग्रेजी ब्लाग के मुकाबले हिंदी ब्लाग के लेखक अधिक भावनात्मक ढंग से अपनी बात रखते हैं और उनके पाठक भी उनको ऐसे ही पढ़ते हैं।

एक बात तय रही कि अंग्रेजी के ब्लाग पढ़ने वाले बहुत मिल जायेंगे क्योंकि उनको हिंदी ब्लाग के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। दूसरा कारण यह है कि हिंदी के प्रचार माध्यम केवल चुनींदा हिंदी ब्लाग लेखकोें पर ही प्रकाश डालते हैं क्योंकि सभी की पहुंच उनके कार्यालयों तक नहीं है। जब किसी विषय के साथ ब्लाग का नाम देना होता है तो अंग्रेजी के ब्लाग का नाम तो दिया जाता है पर हिंदी के ब्लाग को एक समूह के नाम से संबोधित कर निपटा दिया जाता है। कभी कभी झल्लाहट आती है पर फिर सोचते हैं कि अगर कहीं इन्होंने हिंदी के ब्लाग के नाम अपने प्रचार में दिये तो फिर उनको ही तो चुनौती मिलेगी-भला कौन व्यवसायी अपने सामने प्रतिस्पर्धी खड़ा करना चाहेगा। हिंदी के ब्लाग लेखकों के पास साधन सीमित है। मध्यवर्गीय परिवारों के लोग किस तरह अपने ब्लाग चला रहे हैं यह तो वही जानते हैं। फिर जो ब्लाग लेखक हैं उनमें से अधिकतर शांति से रहकर काम करने वाले हैं। किसी प्रकार का दूराव छिपाव नहीं करते इसलिये ही तो अंग्रजी ब्लाग का भी लिंक देते हैं पर अंग्रेजी के ब्लाग ऐसा कहां करने वाले हैं?

लब्बोलुवाब यह है कि बातेंे बड़ी करने से काम नहीं चलेगा। तमाम लोग जो सामजिक आंदोलन और जागरुकता के लिये ब्लाग की भूमिका चाहते हैं उनको यह समझना चाहिये कि यह केवल हिंदी में ही संभव है। ऐसे में वह इसी बात का प्रयास करें कि हिंदी ब्लाग जगत का ही प्रचार करें। हालांकि इसके आसार कम ही हैं क्योंकि वैलंटाईन डे पर नारी स्वातंत्र्य की समर्थक जिन वेबसाईटों का प्रचार हो रहा है उनके सामने प्रतिवाद प्रस्तुत करने वाला कौन था? यकीनन कोई नहीं। हां, हिंदी ब्लाग जगत में बहुत सारे पाठ थे जो नारी स्वातंत्र्य के रूप में पब के प्रचार के विरुद्ध जोरदार ढंग से लिखे गये तो परंपरा के नाम पर स्त्रियों पर अनाचार के विरुद्ध भी बहुत कुछ प्रभावी ढंग से कहा गया। तीसरे पक्ष भी था जिसमें ब्लाग पर ऐसे भी पाठ लिखे गये जो इस मुद्दे को ही प्रायोजित मानते हुए समर्थन या विरोध करने की बजाय उसका मजाक उड़ा रहे थे। देश का बहुत बड़ा पाठक वर्ग उससे पढ़ने से वंचित रह गया जो शायद अंग्रेजी में लिखे गये पाठों से बहुत अच्छा था। वैसे एक बात भी लगती है कि वैलंटाईन पर एकतरफा बहस शायद अंग्रेजी में ही संभव थी क्योंकि उनके पाठ एकदम सतही थे। हिंदी वाले तो बहुत गहराई में उतरकर लिखते हैं और एक बार कोई अच्छा ब्लाग पढ़ ले तो पाठक् उनको पढ़ने पर ही आमादा हो जाते हैं। अंग्रेजी में जो ब्लाग इस दौरान हिट हुए वह भला अब रोज थोड़े ही हिट रहने वाले हैं। अगर इस बात से सीखा जाये तो भी यही निष्कर्ष निकलता है कि समाज में स्थाई परिवर्तन केवल हिंदी भाषा के ब्लाग से ही संभव है। अंग्रेजी में क्षणिक प्रचार ही संभव है स्थाई परिवर्तन नहीं।
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यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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12 फ़रवरी 2009

पूरा कारखाना गुलाबी बना डालो-व्यंग्य

हौजरी कारखाने के मालिक ने अखबार देखा और उछल पड़ा। उसमें लिखा था कही किसी बात का विरोध करने के लिये कुछ लोग गुलाबी चड्डियां भेजने का अभियान प्रारंभ करेंगे। बस, उसके दिमाग में कोई बात आयी और वह कारखाने के लिये निकल पड़ा। जब वह घर से निकल रहा था तब पत्नी ने टोका कि ‘क्या बात है कि आज जल्दी कारखाने जा रहे हैं वह तो अभी बंद होगा कारखानेे मैनेजर ही रोज उसका दरवाजा खोलता है क्योंकि चाभी उसके पास ही रहती है और वह अभी पहुंचा ही नहीं होगा।’

मालिक ने कहा-‘उसका क्या वह तो कर्मचारी है, मुझे तो कारखाने की सभी प्रकार की चिंता करनी पड़ती है। मेरे पास दूसरी चाभी भी है और अपना कारखाना खोलना स्वयं ही खोलना है। ऐसे कमाने के अवसर रोज नहीं आते।’

पत्नी ने पूछा-‘पर आप करेंगे क्या वहां जाकर? वहां कोई दूसरा कर्मचारी भी नहीं आया होगा।’

हौजरी मालिक ने कहा-‘ मैं सीधे कारखाने नहीं जा रहा हूं। यहां से पहले कपड़े वालों के पास जाऊंगा और उनको गुलाबी रंग्र का कपड़ा भेजने की लिये कहूंगा ताकि अपने वस्त्रों का गुलाबी करण कर सकें। अगले कुछ दिन में गुलाबी रंग की बिक्री बहुत होने वाली है। सभी कपड़े वालों को खुद जाकर गुलाबी कपड़े का आर्डर देना है क्योंकि आजकल फोन पर अधिकतर लोग सुनते बहुत हैं पर समझते कुछ नहीं है। फिर इतने दिनों की मंदी के बाद थोड़ी तेजी की आसार लग रहे हैं। अब तो इस बात की भी चिंता नहीं रहेगी कि किसी का वस्त्र फटे और वह नया खरीदे।
पत्नी ने कहा-‘अरे, यह कोई बात हुई कि गुलाबी रंग की हौजरी अधिक बिकने वाली है। भला कोई जरूरी है कि हर कोई गुलाबी रंग की पहने। यह भला कैसा टोटका है।
हौजरी कारखाने के मालिक ने कहा-‘यहां पहनने वाली बात नहीं बल्कि इसे विरोध स्वरूप तोहफे में भेजने की बात हो रही है। जहां तक पहनने वाली बात है तो इस देश की अधिकतर लोग ऊपर के कपड़े ही अच्छे पहने होते हैं पर अंदर के वस्त्रों में कितने छेद है कोई नहीं देखता। यही कारण है कि हौजरी में भी मंदी तो पहले से चलती है और अब वह और अधिक बढ़ गयी है। ऐसे में सर्वशक्तिमान की कृपा से यह विरोध में तोहफे भेजने का नया फैशन शुरू हो गया है उसका फायदा उठाना आवश्यक है।’
पत्नी ने पूछा-‘यह कैसा फैशन है। किसने शुरु किया है जो किसी का विरोध करने के लिये गुलाबी चड्डी बनियान भेजे जा रहे हैं?’
हौजरी कारखाने का मालिक खुश हो गया-‘अच्छा याद दिलाया। मैं तो केवल गुलाबी चड्डी के बारे में ही सोच रहा था। अब बनियान और रुमाल तक गुलाबी बनवाऊंगा। इस देश में कुछ भी हो सकता है। लोगों को तोहफा भेजना है बस वह गुलाबी होना चाहिये। वैसे भी इस देश में परंपरायें रूप बदलती हैं। कुछ का कुछ हो जाता है। संभव है आगे चलकर गुलाबी बनियान और रुमाल विरोधस्वरूप तोहफे भेजने का सिलसिला प्रारंभ हो जाये।’

पत्नी ने कहा-‘पर विरोध स्वरूप क्यों? तोहफा तो प्रशंसा देने और पाने के लिये प्रस्तुत होता है।’
हौजरी कारखाने के मालिक ने कहा-‘तुम्हारे अंदर जरा भी कामनसैंस नहीं हैं। इस दुनियां में नकारात्मक प्रचार से जल्दी प्रसिद्ध मिलती है। सकारात्मक ढंग से चलने पर बरसों लग जाते हैं इसलिये कई लोग तो अपने खिलाफ अभियान चलवाते हैं। कोई चीज बाजार मंे बेचनी हो तो पहले अपने किसी मित्र से निंदा करवाओ फिर उसके प्रतिवाद स्वरूप अपना विज्ञापन करो-यह आजकल सफलता का शौर्टरूट बन गया है। आज अगर हमारे सामने विरोधस्वरूप गुलाबी रंग की चड्डियां भेजने का फैशन आ गया तो कल बनियान और रुमाल भेजने का भी आ जायेगा। हां, रंग नहीं बदलेगा। वह तो गुलाबी ही रहेगा।’
पत्नी ने कहा-‘अरे, जरूरी नहीं है कि सभी गुलाबी रंग का पहने।’
कारखाना मालिक ने कहा-‘कितनी बार बताया है तुम्हें। यह पहनने ओढ़ने की बात नहीं है। यहां तो केवल तौहफा भेजने की बात हो रही है। बस अब मुझे जाने दो। तुम्हारी समझ में नहीं आयेगा।’
पत्नी ने कहा-‘तब तो ठीक है। फिर पैकिंग करने वाली थैलियां और डिब्बे भी गुलाबी बनवाना।’
हौजरी मालिक ने कहा-‘अच्छा याद दिलवाया। आज तो कंपनी के बोर्ड तक गुलाबी रंग रंगवा डालता हूं। गुलाबी रंग की जय!

उसने मैनेजर के मोबाइल की घंटी बजयी और कहा-‘पूरा कारखाना गुलाबी बना डालो।
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