18 मई 2013

मैच फिक्सिंग अब भद्र लोगों का काम नहीं रहा-हिन्दी व्यंग्य चिंत्तन (cricket match mein fixing ab bhadrajanon ka khke nahin -hindi satire thought,editorial and lekh)



          क्रिकेट मैचों में फिक्सिंग का मामला का कोई नया नहीं है। अनेक बार बहुत सारे प्रकरण सामने आये पर हुआ कुछ नहीं।  यथावत सब चलता रहा।  कहने को बीसीसीआई और आईसीसीआई की भ्रष्टाचार विरोधी इकाईयां सक्रिय रहती हैं पर फिक्सिंग रुकने का नाम नहीं ले रही।  इस बार मामला थोड़ा अलग है।  अभी तक फिक्सिंग का मामले मैदान से मैदान में रह जाते थे।  मैदान से अगर उठे तो ड्रांइग रूमों तक ही गये।  कभी कोई संवैधानिक जांच एजेंसी सक्रिय रूप से मैच फिक्सिंग रोकने के लिये अवसर नहीं तलाश पायी। यही कारण है कि फिक्सिंग करने वालों को लगा कि वह तो वह श्वेत पर्दे के पीछे ही रहेंगे।  अगर कोई दाग उछला भी तो श्वेत पर्दे पर ही आयेगा।  कभी कोई खाकी वर्दी वाला उनके दरवाजे तक आयेगा इसका डर किसी को नहीं था।  यही कारण है कि काली नीयत और श्वेतवस्त्र धारी बेखौफ मैच फिक्सिंग में लग रहे।  यह  कहना तो कठिन है कि दिल्ली पुलिस की कार्यवाही से आगे मैच फिक्सिंग रुक जायेगी पर इतना तय है कि अब यह कार्य केवल शातिर लोगों के बस का रह जायेगा।  जिस तरह दूसरे अपराधों में हम देखते हैं कि सामान्य मनुष्य अपराधी नहीं करता क्योंकि उसे पुलिस का डर रहता है जबकि शातिर आदमी बैखौफ कर जाता है।
       यह उन तीन युवा खिलाड़ियों को अपना दुर्भाग्य ही मानना चाहिये कि बैखौफ चल रहे मैच फिक्सिंग जैसे अपराध में किसी संवैधानिक जांच एजेंसी के हस्तक्षेप का पहला शिकार बने।  इन तीनों ने पहले किसी खिलाड़ी को इस अपराध में जेल जाते नहीं देखा। किसी खाकी वाले को किसी क्रिकेट खिलाड़ी के घर की चौखट पर डंडा बजाते हुए नहीं सुना। इनकी मासूमियत में कभी खाकी का खौफ नहीं था वरन् श्वेतवस्त्रधारियों का संरक्षण उन्हें देवता के आशीर्वाद की तरह लगता रहा था।  मासूम हमने इसलिये कहा क्योंकि इन तीनों खिलाड़ियों के खाकी वस्त्रधारी सुरक्षाप्रहरियों के सामने बिना किसी प्रयास के सारे राज खोल दिये।  शातिर अपराधियों से पुलिस इतनी आसानी से अपराध नहीं उगलवा पाती।
    इन तीनों खिलाड़ियों की वजह से तनाव झेल रही उनकी टीम के खिलाड़ियों को इनकी गिरफ्तारी के बाद खेले गये मैच में हार का सामना करना पड़ा। अनुभवी लोग उसके खिलाड़ियों के खेल पर इनकी गिरफ्तारी का तनाव साफ देख सकते थे।  बहरहाल इतना तय है कि मैच फिक्सिंग अब इतना आसान नहीं रहने वाला। दूसरी बात यह कि संविधान की सरंक्षक संस्था पुलिस का इसमें हस्तक्षेप हो गया है वह रुकने वाला नहीं है।  इससे मासूम दिल वाले नये  क्रिकेट खिलाड़ी जरूर डरेंगे।
      पुराने क्रिकेट खिलाड़ियों ने पुलिस को स्टेडियम में अपनी रक्षा करते हुए देखा है। उनके लिये वह न तो दर्शक होते हैं न प्रशंसक बल्कि केवल सरकार के वेतन भोगी उनकी सेवा में रत रक्षक होते हैं।  यही भावना नये खिलाड़ियों में घर कर गयी है। जब से देश में आंतकवाद बढ़ा है तब से क्रिकेट मैचों की रक्षा के लिये स्थानीय पुलिस प्राणप्रण से जुट जाती है।  यह अलग बात है कि इन मैचों से पैसा कमाने वाले कुछ लोगों पर आतंकवादियों को भी पैसा देने का संदेह होता है।  विदेशों में बैठे कुछ कथित अपराधियों पर मैच फिक्सिंग यानि सट्टे से पैसा कमाने के साथ ही आतंकवादियों की मदद का भी आरोप की चर्चा अनेक  प्रचार माध्यमोें पर होता रहा है। सच क्या है? यह तो कभी सामने नहीं आया पर इतना तय है कि फिक्सिंग का खेल कोई कमजोर लोगों का काम नहीं रहने वाला है। 
    पहले भी अनेक प्रकरण आये पर कभी उन पर संवैधानिक जांच एजेंसी की वक्र दृष्टि नहीं गयी।  इस बार दिल्ली पुलिस दलबल के साथ मैच फिक्सिंग पकड़ने के लिये जुट गयी। स्थिति यह कि दिल्ली की पुलिस मुंबई से कथित आरोपियों को उठा लायी।  पहले कहा जाता था कि पुलिस की बजाय किसी दूसरी एजेंसी से जांच करायी जाये क्योंकि कोई पुलिस दूसरे राज्य जाकर जांच नहीं कर सकती।  कभी कभी क्रिकेट को नियंत्रित संस्थाओं से ही कहा जाता था कि तुम कुछ करो।  फिर कहा जाता था कि मैच फिक्सिंग रोकने का कोई कानून नहंी है।  इन्हीं बातों से नये लोगों मेें मैच फिक्सिंग करने की प्रवृत्ति बढ़ी हो तो आश्चर्य नहीं समझना चाहिये। दिल्ली पुलिस ने अपने पराक्रम से यह तो बता ही दिया कि यह सब बातें गलत थी।  सट्टेबाजी रोकने के लिये पुलिस के पास कानून है। ठगी रोकने का कानून है।  हालांकि अनेक राज्यों में स्थानीय पुलिस ने मैचों पर सट्टा लगवाने वाले पकड़े हैं पर खिलाड़ियों को पहली बार पकड़ा गया है।  दूसरी बात यह भी थी अभी तक पुलिस अन्य परंपरागत अपराधों से जुझती रही है।  उसे यह मानने में बहुत समय लगा है कि इस तरह मैच फिक्सिंग भी सट्टे जैसा अपराध है जिसमें वह बिना किसी उपरी आदेश के अपना पराक्रम दिखा सकती है।
     अब एक बार अगर इस मामले में दिल्ली पुलिस ने हस्तक्षेप किया है तो उसका प्रभाव  अन्य राज्यों और शहरों की पुलिस की मानसिकता पर भी पड़ेगा।  इसलिये वह अपने रक्षित क्रिकेट खिलाड़ियों पर वह कभी भी वक्र दृष्टि डाल सकती हैं।  अभी तक मामले की जांच चल रही है।  अनेक लोग कह रहे हैं कि इससे मैच फिक्सिंग रुकने वाली नहीं है।  जिस तरह चोर और डकैत पकड़े जाते है और छूटने पर  फिर  उनका काम जारी रहता है पर हमारा सोचना है कि क्रिकेट में ऐसा नहीं होगा।  क्रिकेट भद्रजनों का खेल है। अभी तक मैच फिक्सिंग भी एक भद्र अपराध बना हुआ था मगर पुलिस के हस्तक्षेप ने इसकी परिभाषा बदल दी है।  संभव है कि सटोरिये न माने और नये खिलाड़िायों को अपने मोहरे बनाने का क्रम बनाये रखें। एक दिक्कत उनको आयेगी वह यह कि उन्हें इसके लिये शाातिर और अपराधी दिमाग के खिलाड़ियों को चुनना पड़ेगा।  हर सामान्य क्रिकेट खिलाड़ी इसके लिये तैयार नही होगा।  दूसरी समस्या उन खिलाड़ियों के साथ भी आयेगी जो मैच फिक्सिंग करते हैंे पर पकड़े नहीं जाते।  उनके पास पैसा तो खूब होगा पर चैन की नींद नहीं सो पायेंगे। पुलिस का डर अच्छे खासे की नींद हराम कर देता है।  मैच फिक्सिंग भी नहीं छोड़ पायेंगे क्योंकि उनके आका सटोरिये ऐसा करने नहीं देंगे।
  कुछ विद्वान कह रहे हैं कि कुंऐ में भांग नहीं है बल्कि कुंआ ही भांग वाला है। बहरहाल अब क्रिकेट खिलाड़ियों की मैदान पर हर गतिविधि पर नज़र रखी जायेगी। पुलिस के अनुसार खिलाड़ियों ने सट्टेबाजों के अनुरूप गेंदबाजी करने से पूर्व तौलिया पैंट पर लटकाने, शर्ट को ऊपर नीचे करने तथा हाथ पर हाथ फेरने के संकेत देने की बातें कही थीं।  इससे होगा यह कि कोई किकेट खिलाड़ी अगर कहीं छींक देगा, कभी नाक रगड़ेगा या अपने ही बालों पर हाथ फेरेगा  तो लोग समझेंगे कि अपने आका सटोरिये को संदेश दे रहा है।  पहले फिक्सिंग के आरोपों के कारण हमने क्रिकेट देखना बंद कर दिया था पर अब यह देखने के लिये कभी देखेंगे कि खिलाड़ी कैसे कैसे संकेत बनाता है।  पहले  यह जानकार दुःख हुआ कि हमने फिक्स मैचों को सच समझा पर अब फिक्स मैंचों को देखकर व्यंग्य का आनंद लेंगे।  वैसे भी क्रिकेट मैचों को अब फिल्म की तरह दिखाया जाने लगा है।  ऐसा लगता है कि मैचों के परिणाम की पटकथा लिखी जाती है।  किसी की लिखी पटकथा आनंद उठाने में हर्ज ही क्या है?

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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1 मई 2013

धनी लोग अपनी रक्षा का सार समाज की रक्षा में ढूंढें-मज़दूर दिवस पर विशेष हिन्दी लेख (mazddor diwal par special hindi article-dhayni log apni raksha ka saar samaj ke raksha mein hi dhoondhen)



         1 मई को मजदूर दिवस पूरे विश्व में बनाया जाता है। भारत में कार्ल मार्क्स के अनुयायी इससे सार्वजनिक समारोह में उल्लास के साथ मनाते है।  आमतौर से वामपंथी और जनवादी विचारधारा से जुड़े बुद्धिमान लोग आज देश के गरीबों के लिये अनेक प्रकार के आयोजन करते हुए विश्व के पूंजीवाद पर जमकर शाब्दिक हमले करते हैं। चूंकि भारत एक श्रमप्रधान देश है इसलिये यहां कार्लमार्क्स के अनुयायी बुद्धिमानों को बहुत भीड़ देखने और सुनने  मिल जाती है। मूलतः कार्ल मार्क्स विश्व में प्रचलित धर्मों का विरोधी था।  वह कभी भारत नहीं आया इसलिये उसका धार्मिक ज्ञान सीमित था। दूसरी बात यह कि वह अध्यात्मिक ज्ञान और धार्मिक विचारधाराओं के अंतर से वह इतना परिचित नहीं था जितना एक आम भारतीय अध्यात्मिक चिंतक होता है।  उसकी नज़र में धर्म एक अफीम की तरह है जो जमकर नशा देता है पर वह यहीं  जान पाया कि पैसा, पद तथा प्रतिष्ठा का नशा भी कम बुरा नहीं है।
      वैसे तो भारतीय अध्यात्मिक चिंत्तक कार्ल मार्क्स की विचाराधारा को भारत के लिये प्रभावहीन मानते हैं पर श्रमकार्य में रत लोगों के प्रति उनकी सहानुभूति होने के कारण मजदूर दिवस मनाना उनको बुरा नहीं लगता।  दरअसल इस अवसर पर भारतीय अध्यात्म में श्रमजीवी, दरिद्र तथा लाचार मनुष्यों को सहारा देने के जो संदेश दिये गये हैं  इस दिन चर्चा का अच्छा अवसर मिलता है।
        श्रीमद्भागवगत गीता में अकुशल श्रम को हेय मानने वालों को तामस बुद्धि का माना गया है।  अकुशल श्रम  हमेशा ही मजदूर के हिस्से में आता है और उसे हेय मानने का अर्थ है कि व्यक्ति की बुद्धि तामसी है।  श्रीमद्भागवत गीता में यह भी कहा गया है कि दूसरे के रोजगार का हरण करने वाला आसुरी प्रवृत्ति का है।  यह मजदूरों के रोजगार सुरक्षा कें लिये महत्वपूर्ण बात है।  समाज में आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक सद्भाव बना रहे इसलिये दान आदि की प्रवृत्ति भी विकसित करने की बात भारतीय अध्यात्मिक दर्शन में कही गयी है। मूल बात यह कही गयी है कि समाज की रक्षा गरीब तबका शारीरिक शक्ति तथा मध्यम वर्ग अपनी बुद्धि से करता है। उच्च वर्ग का यह दायित्व है कि वह इन दोनों वर्गों की रक्षा करे। 

          विदुर नीति में अनेक महत्वपूर्ण बातें कही गयी हैं
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                    सम्पन्नतरमेवाचं दरिद्र भुंजते सदा।
                   क्षुत् स्वादुताँ जनपति सा वाद्वेषु सुदुर्लभा।
                 हिन्दी में भावार्थ-दरिद्र मनुष्य सदा ही स्वादिष्ट भोजन करते हैं क्योंकि भूख उनके भोजन में स्वाद पैदा करती है। ऐसी भूख धनियों के सर्वथा दुर्लभ है।
                    प्रावेण श्रीमतां लोके भोक्तुं शक्तिनं विद्यते।
                  जीर्येन्त्यपि हि काष्ठानि दरिद्राणां महीपते।
                 हिन्दी में भावार्थ- संसार में धनियों में प्रायः भोजन करने की शक्ति नहीं होती परंतु दरिद्र काष्ट तक पचा जाते हैं।
                        ऐश्वमदपापिष्ठा मदाः पानमदादयः।
                   ऐश्वर्यमदत्तो हि नावत्तिवा विबुभ्यते।
                 हिन्दी में भावार्थ-शराब तथा अन्य नशीले पदार्थों से भी नशा पैदा होता है पर उनसे बुरा ऐश्वर्य का नशा है। यह नशा आदमी को पथभ्रष्ट कर ही देता है।
      कहने का अभिप्राय यह है कि हमारा अध्यात्मिक दर्शन समाज के हर वर्ग का दायित्व वैज्ञानिक ढंग से तय करता है। किसी बाहरी विचाराधारा के अनुसरण की आवश्यकता नहीं है।  एक अध्यात्मिक लेखक के रूप में हम कार्ल मार्क्स के प्रयासों की सराहना करते हैं मगर यह मानते हैं कि कहीं न कहीं उनकी विचाराधारा अव्यवाहारिक है। वह मनुष्य की मनोदशा का अध्ययन नहीं करती।  यही कारण है कि उनकी विचाराधारा के कथित अनुसरण करने के नाम पर अनेक देशों में क्रांतियां हुईं पर वहां कोई बेहतर हालात नहीं बने।  जहां पहले धार्मिक ठेकेदार सक्रिय थे वहां कथित रूप से क्रांति के ठेकेदारों ने साम्यवाद का नारा देकर सत्ता हथियाई।  उनमें अनेक राष्ट्र कालांतर में बिखर गये।  सोवियत संघ में तो कार्ल मार्क्स के अनुयायी लेनिन को पहले देवता का दर्जा मिला पर बाद में उनकी मूर्तियां ही तोड़ डाली गयीं।  भारतीय अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार मनुष्य देह में अनेक प्रकृतियां विराजमान हैं।  जिनमें अहंकार सबसे महत्वपूर्ण है।  गरीब हो या अमीर उसमें अहंकार होता है। गरीब को अगर कहीं से धन लेना है तो वह गरीब कहलाने को तैयार होता है पर जहां से कुछ न मिले वहां वह कभी गरीब नहीं कहलाना चाहता।  हर मनुष्य अपना  स्वाभिमान बनाये रखना चाहता है।  यही कारण है कि  मजदूरों और गरीबों के नाम पर सत्ता हथियाने वाले अपने पद का अहंकार नहीं छोड़ पाते। उल्टे तानाशाही के चलते उनके ठाटबाट राजाओं से अधिक हो जाते हैं। साम्यवादी विचारक  पारिवारिक संस्कृति के विरोधी माने जाते हैं पर जहां कार्ल मार्क्स के चेलों ने सत्ता हथियाई है वहां वह अपनी ंपारिवारिक  मोह से मुक्त नहीं हो पाये और जिन सार्वजनिक पदों पर स्वयं विराजे वहां अपने बच्चों लाने का प्रयास कर रहे  हैं।  यही इस बात का प्रमाण है कि कार्ल मार्क्स की बातें कहंी न कहीं  मनुष्य के लिये अव्यवहारिक है।  उनकी विचारधारा धरती पर स्वर्ग  लाने के स्वप्न से अधिक नहीं है।
       इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि हम समाज के उच्च वर्ग को अपने दायित्वों से मुक्त करना चाहते हैं। कम से कम कार्ल मार्क्स की इस बात के लिये  प्रशंसा करनी तो चाहिये कि उसे विश्व के मजदूरों और गरीबों में चेतना लाने का काम किया।  भारतीय अध्यात्मिक दर्शन स्पष्ट रूप से यह मानता है कि धर का  बंटवारा समाज में अलग अलग रहेगा तो वह यह भी कहता है कि धनिकों को अपनी रक्षा का सार समाज की रक्षा में ढूंढना चाहिये।  उनके हित श्रमवर्ग के हित में ही अंतर्निहित हैं।  भले ही उच्च वर्ग के लोग गरीब को दान न दें पर उसे अपने परिश्रम का उचित प्रतिफल तथा सम्मान देने के साथ ही उसके लिये रोजगार के अवसर बनाये रखने का प्रयास करें।  ऐसा नहीं करेंगे तो वह स्वतः नष्ट हो जायेंगे। 
       इस मजदूर दिवस के अवसर पर ब्लॉग लेखक मित्रों तथा पाठकोको बधाई।


लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
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