2 जनवरी 2010

तन्हाई-हिन्दी शायरी (tanhai-hindi shayri

 किसी की कामयाबी देखकर

कभी बहके नहीं

इसलिये अपनी राह खुद चुनी

उस पर  अकेला तो हो ही जाना था

अब अपनी तन्हाई में  भी

अपने साथ खुद ही होता हूं।

भीड़ तो भ्रम में

चाहे जहां चल देती है

उसके शोरशराबे का मतलब

तभी समझ में आता

जब अकेला होता हूं।

धोखा देने के

एक जैसे मंजर हमेशा

आंखों के सामने आते,

बस कभी नाम तो कभी चेहरे

बदलते दिखते,

मैं तो बस देख रहा होता हूं।

कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com

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