किसी की कामयाबी देखकर
कभी बहके नहीं
इसलिये अपनी राह खुद चुनी
उस पर अकेला तो हो ही जाना था
अब अपनी तन्हाई में भी
अपने साथ खुद ही होता हूं।
भीड़ तो भ्रम में
चाहे जहां चल देती है
उसके शोरशराबे का मतलब
तभी समझ में आता
जब अकेला होता हूं।
धोखा देने के
एक जैसे मंजर हमेशा
आंखों के सामने आते,
बस कभी नाम तो कभी चेहरे
बदलते दिखते,
मैं तो बस देख रहा होता हूं।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियरकभी बहके नहीं
इसलिये अपनी राह खुद चुनी
उस पर अकेला तो हो ही जाना था
अब अपनी तन्हाई में भी
अपने साथ खुद ही होता हूं।
भीड़ तो भ्रम में
चाहे जहां चल देती है
उसके शोरशराबे का मतलब
तभी समझ में आता
जब अकेला होता हूं।
धोखा देने के
एक जैसे मंजर हमेशा
आंखों के सामने आते,
बस कभी नाम तो कभी चेहरे
बदलते दिखते,
मैं तो बस देख रहा होता हूं।
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