29 जनवरी 2015

विज्ञापनों का जोर-हिन्दी कविता(vigyapano ka jor-hindi poem)



जब होगा द्वंद्व
एक जीतेगा
दूसरा हारेगा।

फिर होगा दूसरा दौर
दूसरा जीतेगा
पहला हारेगा।

कहें दीपक बापू पर्दे पर
पूर्वनिर्धारित स्पर्धाऐं
असली दिखाई जाती हैं,
पहले लिखी जाती पटकथा
फिर पात्रों को अदायें
सिखाई जाती हैं,
किसके हारने पर रोये,
किसके जीतने पर आपा खोये,
आम इंसान के सामने
विज्ञापनों का शोर है,
बुद्धि पर निदेशक का जोर है
जिसकी पसंद अपनी समझ
उंगली दांतों तले डालेगा।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

19 जनवरी 2015

इंसान खुद अपना पीर है-हिन्दी कविता(insan khud apna peer hai-hindi poem)



सभी जानते हैं

अपने ही हाथों से

बनती  जिंदगी की तकदीर।



फिर भी अपनी हालातों के

सच से भागते लोग

कोई सिद्ध ढूंढते हैं

दिखाने के लिये हाथ की लकीर।



कहें दीपक बापू दिल दिमाग पर

दौलत और शौहरत का छाया भूत

इंसान को चूहा बना देता

भूल जाता  कि

वह अपना ही खुद पीर है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

11 जनवरी 2015

कोई ढूंढे तो-हिन्दी कविता(koyee dhoohdne to-hindi poem)



हृदय में भावना
उमड़ते समंदर में
मोती जैसे भाव भरे हैं
कोई ढूंढे तो।

जीभ के पर्वत से
बह सकती है
शब्दों से भरी वाणी
नदी की तरह
अपनी धारा से
ज़माने के हृदय में
शीतलता बरसा सकती है
कोई बोले तो।

कहें दीपक मुश्किल होता है
जब आंखें बाहर देखती हैं
अंदर रहता है अंधेरा
कान आतुर है प्रिय
स्वर सुनने के लिये
अंदर बहरेपन का होता पहरा
अपनी उंगली
सारी दुनियां की तरफ
दुश्मन बताने के लिये उठाते
अपनी सोच में
ढेर सारे कांटे मिल जायेंगे
कोई खोले तो।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

1 जनवरी 2015

चिंता का सौदा-हिन्दी व्यंग्य कविता(chinta ka sauda-hindi satire poem)



अनेक व्यक्त्वि
पूरे संसार की
चिंता करते नज़र आते हैं।

कागज और पर्दे पर
दर्दनाक शब्दों का
काला चित्र सजाते हैं।

कहें दीपक बापू चिंता का सौदा
अब प्रचार के बाज़ार में होता है,
दाम लेकर बनते हमदर्द
ऐसे बुद्धिमानों की दृष्टि में
हर इंसान रोता है,
कभी शुल्क ज्यादा लेकर
अपने घोषित खलनायक के
यह  प्रशंसक भी हो जाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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