19 जनवरी 2015

इंसान खुद अपना पीर है-हिन्दी कविता(insan khud apna peer hai-hindi poem)



सभी जानते हैं

अपने ही हाथों से

बनती  जिंदगी की तकदीर।



फिर भी अपनी हालातों के

सच से भागते लोग

कोई सिद्ध ढूंढते हैं

दिखाने के लिये हाथ की लकीर।



कहें दीपक बापू दिल दिमाग पर

दौलत और शौहरत का छाया भूत

इंसान को चूहा बना देता

भूल जाता  कि

वह अपना ही खुद पीर है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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