7 अप्रैल 2018

शांत शहर खौफ के अंदेश में बंद हैं-दीपकबापूवाणी (Shant shahar Khauf ke andeshe mein band hai-DeepakBapuwani)

शांत शहर खौफ के अंदेश में बंद हैं, सब कांप रहे चाहे पत्थरबाज़ संख्या में चंद हैं।
‘दीपकबापू’ अजायबघर जैसी बस्ती बसायी, इंसान खड़े जैसे मूर्ति सोच अब बंद है।।
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हृदय में कलुषित भाव साधु वेश धर लेते, जहां मिले मलाई वहीं मुंह कर लेते।
‘दीपकबापू’ ज्ञान सुनाकर वर्षों तक जग ठगते, कभी महल की घास भी चर लेते।।
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बेजुबान का गोली से शिकार करते हैं, पर्दे पर नायक रूप में डर का विकार भरते हैं।
‘दीपकबापू’ वाणी होते भी लोग रहते मौन, नकली सितारे नियम का धिक्कार करते हैं।।
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सामने चलाई गोली अपने पीछे भी लग जाती, शाप की वाणी भी भाग्य ठग जाती।
‘दीपकबापू’ बरसों पहले कत्ल कर भूल गये, याद दिलाती कुदरत जब जग जाती।।
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