29 जुलाई 2013

कौन दर्द दूर कर पायेगा-हिन्दी कविता (kaun dard door ka paayega-hindi kavita)



यकीन करो

तुम्हारे दर्द की दवा करने

कोई फरिश्ता आकाश से नहीं आयेगा,

जमीन पर भी इलाज का दावा करने वाला

कोई इंसान बिना पैसे मरहम नहीं लगायेगा।

कहें दीपक बापू

कान से नारे सुनकर अनुसना कर देना,

लिखे वादे से भी आंख फेर लेना,

नुस्खे बनाये है सौदागरों ने

केवल अपने घर भरने के लिये,

दूसरे के घर की

रौशनी चुराकर जलाते अपने दिये,

आर्त होकर मत गाओ उनके गीत,

मतलब के हैं जो मीत,

कहीं रिश्ते नाम के रह जाते,

कहीं नाम से रिश्ते लोग बढ़ाते,

अपने सहने की ताकत बढ़ाओ

मुस्कराकर अपने गम घटाओ,

कोई नहीं है इस दुनियां में

लोग खरीद रहे खुद अपने लिये जख्म

इस ज़माने में आपसी  होड़ लगाकर

कौन किसका दर्द दूर कर पायेगा।

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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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9 जुलाई 2013

उम्रदराज का मनोविज्ञान-हिन्दी लेख (umradaraj ka manovigyan-hindi lekh)



       भारतीय अध्यात्मिक दर्शन में स्त्री पुरुषों के संबंध में बहुत कुछ लिखा गया है।  मूल रूप से काम संबंध स्त्री पुरुष का ही माना गया है।  उसमें कहीं भी समलैंगिक संबंधों की चर्चा नहीं है।  आधुनिक समय में जिस तरह कुछ देश समलैंगिक संबंधों को कानूनी दर्जा दे रहे हैं उसके आधार पर हम कह सकते हैं कि हमारा दर्शन अपूर्ण है पर सच बात यह है कि स्त्री पुरुष के संबंधों से ही आगे के जीवन का निर्माण होता है इसलिये वही एक सात्विक प्राकृतिक अवस्था है।  ऐसे में अगर भारत में कोई समलैंगिक दुर्घटना होती है तब हायतौबा मच जाती है।  दरअसल हम यहां  उस घटना की बात कर रहे हैं जिसमें एक राजनेता पर एक युवक का दैहिक शोषण करने का आरोप लगने की बात  सामने आयी है जिसने देश के सामाजिक जगत को हैरान कर दिया है।  राजनेता की आयु अस्सी वर्ष है और उसकी प्रतिष्ठा का जो पतन हुआ है वह राजनीति में नैतिकता के हृास से अधिक समाज में बढ़ती विकृत मानसिकता का प्रमाण भी है।
             आमतौर से राज्य कर्म में लिप्त लोगों के पास अपना काम निकलवाने वालों की भारी भीड़ रहती है।  दूसरी बात यह कि राजकीय संरक्षण पाने का मोह लोगों में इतना होता है कि वह किसी भी हद तक जा सकते हैं।  ऐसे में उन राजसी पुरुषों को  जो प्रत्यक्ष राज्य कर्म में लिप्त हैं  अपना नैतिक आवरण बचाना कठिन कार्य होता है।  जैसा कि हम जानते हैं कि मनुष्य के तीन प्रकार के स्वाभाविक कर्म होते हैं-सात्विक, राजस और तामस।  सात्विक लोग अपने निज आवश्यकताओं तक राजस कर्म करते हैं। उनके लक्ष्य भी सीमित होते हैं इसलिये आमतौर से प्रत्यक्ष राज्य कर्म में उनकी भूमिका अधिक लंबी नहीं रह पाती।  अधिक रहे और प्रभावी भी  तो प्रजा का भाग्य ही समझिये।  तामसी प्रवृत्ति के लोगों को यदि राज्य कर्म में प्रत्यक्ष भूमिका मिल जाये तो समझ लीजिये कि हालातों को बिगड़ना ही है।  हां, अगर राजसी प्रवृत्ति के लोग अगर राज्य कर्म में सीधे हों तो एक बेहतर संभावना बनती है।  अगर राज्य कर्म राजसी प्रवृत्ति से किये जायें तो यकीनन प्रजा के लिये सुखदायक होता है।  यहां हम यह भी बता दें कि जिनकी मूल प्रवृत्ति सात्विक है उन्हें राज्य कर्म से बचना चाहिये क्योंकि भले ही वह अपने आचरण की वजह से कुछ समय तक प्रजा में लोकप्रिय रहें पर अपने अंदर छल, कपट, धोखा तथा चालाकी के गुणों के अभाव में कालांतर में उनका राज्य प्रजा के लिये फलदायी नहीं रहता।  राज्य कर्म में प्रजा हित के लिये अनेक बार शत्रु, विरोधी, अपराधी तथा अव्यवस्था फैलाने वाले के साथ इन्हीं गुणों की शक्ति पर ही निपटा जा सकता है।  बहरहाल हम राजसी प्रकृत्ति के लोगों से ही राज्य कर्म करने की बात तो करते हैं पर उनके आचरण सात्विक होने की आशा भी करते हैं। यही से समाज की कठिन यात्रा प्रारंभ होती है। 
      राजसी प्रवृत्ति के लोगों के लोभ, लालच, काम तथा अहंकार का भाव स्वाभाविक रूप से रहता है।  यही कारण है कि ज्ञानी लोग कभी भी राजसी लोगों के दरबार में जाने से कतराते हैं।  आज के लोकतांत्रिक युग में किसी का भी राजपद स्थाई नहीं है इसलिये यह सुविधा जरूर मिल जाती है कि जब तक आदमी पद पर उसे सम्मान देते रहो। जैसे ही हटे उसे पुराने हिसाब निकाल लो।
     यह जिस विषय पर बात हो रही है वह अस्सी वर्षीय राजनेता के एक युवक का दैहिक शोषण के आरोप से जुड़ा है।  वैसे तो पहले भी अनेक नेताओं पर इसी तरह के आरोप लगे हैं और उनकी आयु भी अस्सी के आसपास रही है पर समलैंगिकता की बात जो यह सामने आयी है उससे अच्छे खासे राजनेताओं को हतप्रभ कर दिया है।  अगर किसी युवा नेता का किसी युवती के साथ ऐसा व्यवहार होता तो संभवतः समझा जा सकता था।  राजनेता के संगी साथी तमाम तरह का प्रतिवाद कर सकते थे मगर इस प्रकरण में तो ऐसी स्थिति हो गयी है कि कोई क्या कहे?  हम अगर अपने अध्यात्म दर्शन की बात करें तो नारियों का दैहिक शोषण चाहे भले ही उनकी मर्जी से हो मगर दोष पूरा पुरुष की ही माना जाता है।  उसमें आप किसी नारी से यह प्रश्न नहीं पूछ सकते कि तुमने पहले क्यों नहीं बताया? इस प्रकरण में अनुचित उचित क्या है, फिलहाल कहना कठिन लगता है।
       आम लोगों में कुछ लोग युवा नेता और युवती के बीच किसी प्रकार के विवादास्पद संबंधों पर नाखुश होने के बावजूद उसे अप्राकृतिक नहीं मानते। कोई भी ऐसा प्रकरण भले ही अपराधिक पृष्ठभूमि पर आधारित हो पर उसे समझा जा सकता है। दूसरी बात यह कि राजसी पुरुषों में कुछ ऐसे लोग होते ही है जो राजपद मिलने पर मदांध हो जाते हैं, इस सत्य को सभी जानते हैं। इसलिये पद की शक्ति पर नारियों के देह शोषण का प्रकरण हर स्थिति में तर्क की कसौटी पर प्रथक प्रथक रूप से देखा भी जा सकता है मगर जहां किसी पुरुष का दूसरे युवा पुरुष के साथ दबाव डालकर  अप्राकृतिक यौन संबंधों की बात हुई हो वह देश भी के सभ्य राजनेताओं का मुंह अगर खुला रह गया हो तो कौन सी बड़ी बात है?
      प्रचार माध्यमों पर राजनेता के कृत्य का समर्थन कोई नहीं कर रहा पर उसके पक्ष के लोग अपना बचाव यह कहकर कर रहे हैं कि हमने तो उससे मंत्र पद छीनकर  दल से निकाल दिया।  उस राजनेता के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट भी लिखने के बाद उसे गिरफ्तार कर जेल भी भेजा गया है।  इस आधुनिक लोकतंत्र की यह महिमा भी है कि मात्र एक सप्ताह पूर्व जो राजनेता इतना शक्तिशाली था कि उसके प्रदेश का अर्थतंत्र उसके पांव तले था वह अब जेल में पहुंच गया।  वह भी उस जेल में जिसके शुभारंभ के लिये फीता उसने स्वयं ही काटा था।  फिल्मी दुनियां के लेखकों  के लिये यह एक मनोरंजन कहानी हो सकती है पर समाज के लिये यह अत्यंत चिंता का विषय है कि उसके शिखर पुरुष यौन दुराचार नहीं वरन् यौन विकृत्ति का शिकार हो गया।
         समलैंगिकता का जुड़ाव न हो तो यह कोई पहला ऐसा प्रकरण नहीं है कि जब किसी वरिष्ठ राजनेता का ऐसा हश्र  हुआ हो।  दरअसल बुजुर्ग राजनेताओं का ऐसे प्रकरण में फंसना कोई आश्चर्य की बात नहीं  होना चाहिये पर एक बात कहनी पड़ती है कि इन लोगों ने धूप में अपने बाल सफेद किये।  अपने पद बनाये रखने में उन्होंने भले ही महारत हासिल किया पर बदलते जमाने को समझा नहीं।  आज जब प्रचार माध्यम इतने सक्रिय हो गये हैं और  हर हाथ में कैमरा है और उसका उपयोग करने के लिये सभी लालायित भी हैं।  अभी तक  कैमरा के पिंजरे में फंसने का शिकार अनेक राजनेता, अधिकारी और पत्रकार  हो चुके हों। जब इन बुजुर्गों को सतर्क रहना था तब यह शिकार बन गये।  इन महानुभावों ने आधुनिक तकीनीकी तंत्र को   समझा नहीं  और अपने कर्म जस की तस जारी रखे जिसमें  स्वयं भी फंस गये।  एक चैनल पर एक मनोचिकित्सक कह रहे थे कि इस तरह के राजनेता अपनी मानसिक विकृति का शिकार घटना के प्रकाश में आने के दिन ही नहीं होते बल्कि बीस यह तीस बरसों से उनको ऐसे दौर पड़ते रहे होंगे, इसलिये यह संभव नहीं है कि समर्थकों या विरोधियों को मालुम न हो।  आप इस प्रकरण में बहस के लिये चैनल पर मनोचिकित्सक को बुलाये जाने का यह अर्थ समझ सकते हैं कि कहीं न कहीं मनोविज्ञानिक रूप से भी इस घटना को  देखा जा रहा है। गुस्सा कम हैरानी अधिक हो रही है।
        अब यह प्रकरण तो कानून के दायरे में है पर हम इसका सामाजिक विश्लेषण तो कर ही सकते हैं। अस्सी वर्षीय राजनेता पर एक युवक ने यौनाचार का आरोप लगाया हो यह   तय बात है कि युवक का प्रकरण नारी शोषण की श्रेणी में नहीं आता।  यह अलग बात है कि कुछ बुद्धिमान बदहवासी में उस युवक की छवि में युवती जैसी मासूमियत भरने का प्रयास कर रहे हैं।  नारी का दैहिक शोषण जहां विश्व में भारत की छवि क्रूर बनाता है वह यह प्रकरण शर्मनाक स्थिति बना देगा।  ऐसा नहंी है कि विदेशों में इस तरह के प्रकरण नहीं होते पर हमारे देश के लिये अत्यंत शर्मनाक है।  इस देश में सभ्य राजनेताओं की कमी नहीं है पर आज के प्रचार माध्यमों के लिये सनसनी केवल असभ्यता ही निर्माण करती है।  यही कारण है कि सभी दलों के सभ्य राजनेता फूंकफुंककर अपने अपने हिसाब से बयानबाजी कर रहे हैं।  आखिरी बात राज्य कर्म में लिप्त सभी लोगों को यह कहना चाहेंगे कि पुराने ढर्रे पर यह सोचकर मत चलो कि हम कभी पकड़े नहीं जायेंगे। आंखें खोलो और देखो कि तुम्हारी किसी भी छवि को कभी भी कैमरे में कैद किया जा सकता है। यह केवल सलाह ही है इसे कोई मानेगा इसमें संशय है। जो सभ्य राजनेता है उन्हें इस सलाह की आवश्यकता नहीं है और जो मानसिक विकृति का शिकार है वह जब अपने दुर्भाव के चरम पर होते है तब उनको इसका ध्यान नहीं रहेगा।  उम्रदराज नेताओं का ऐसी घटनाओं में फंसना यही दर्शाता है। इतने उम्रदराज कि अगर सामान्य मनुष्य होते तो किसी ऐसे ही  अपराध में उन्हें बंदी बनाने से पहले दस बार सोचा जाता जबकि उन्हें तो उच्च पद पर होने के बावजूद इस   सुविधाजनक सोच का लाभ पाने के योग्य नहीं समझा गया।         

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
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