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26 दिसंबर 2014

चिंत्तकों के महल-हिन्दी कविता(chinttakon ke mahal-hindi poem)


शांति के लिये
कबूतर उड़ाते
विकास के लिये
सपनों का बाज़ार लगाते हैं।

सोते हैं आरामदायक बिस्तर पर
बेघरों के लिये चिंत्तन करते
अपने महल दर्शनीय बनाते है।

कहें दीपक बापू जनहित पर
समाज सेवकों की सेना
चली आ रही है,
प्रजा शब्दों से ही
छली जा रही है,
सभी अपने इष्ट का रूप
बताते सर्वश्रेठ
नाम लेकर नामा कमाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

19 दिसंबर 2014

आत्मप्रचार-हिन्दी कविता(atma prachar-hindi poem)




विश्वास कोई रस्म नहीं है
जिसे निभाया जाये।

सहायता कोई गीत नहीं
करने के बाद जिसे गाया जाये।

आशा कोई आकाश में
लटका फल नहीं है
जो गिर कर हाथ आ जाये।

कहें दीपक बापू अहंकार पर
सवारी करते हैं लोग
पांव जमीन पर नहीं होते,
वीरता का करते दिखावा
दिल में डर रहे होते,
आत्म प्रचार में लगे बकवादी
कोई नहीं ऐसा जो अपने
कौशल का प्रमाण साथ लाये।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

13 दिसंबर 2014

दृष्टि में मोतियाबिंद-हिन्दी कविता(drishti mein motiyabind-hindi poem)


बेखबर लोग
 अपने अंतर्मन की
हलचल में मग्न हैं।

बाहर झांक रहे
ंअंतर्मन की दृष्टि में
छाया है मोतियाबिंद
नहीं रही अनुभूति
कौन वस्त्र पहने
कौन खड़ा नग्न है।

कहें दीपक बापू चिंत्तन से
दूर चिंताओं के जाल में
फंसा पूरा ज़माना
नैतिकता की बातें करते
आचरण सभी के भग्न हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

6 दिसंबर 2014

पतंजलि योग साहित्य में समाधि से दूसरे की काया में प्रवेश की बात नहीं कही गयी-हिन्दी चिंत्तन लेख(patanjali yoga sahitya meih samadhi se doosre ki kaya mein pravesh ki baat nahin kahi gayi-hindi thought article)



            हमारे यहां आजकल एक कथित संत की समाधि पर चर्चा चल रही है। इन संत को पहले रुगणावस्था में चिकित्सकों के पास ले जाया गया जहां उनको मृत घोषित कर दिया।  उनके पास अकूत संपत्ति है जिस पर उनके ही कुछ लोगों की दृष्टि है इसलिये कथित भारतीय अध्यात्मिक दर्शन की आड़ में उन संत को समाधिस्थ घोषित कर दिया।  दस महीने से उनका शव शीत यंत्र में रखा गया है और उनके कथित अनुयायी यह प्रचार कर रहे हैं कि वह समाधिस्थ है। अब न्यायालय ने उनका अंतिम संस्कार करने का आदेश दिया है पर कथित शिष्य इसके बावजूद अपनी आस्था की दुहाई देकर संत की वापसी का दावा कर रहे हैं।
            हमारे देश में धर्म के नाम पर जितने नाटक होते हैं उससे भारतीय अध्यात्मिक दर्शन से लोग दूर हो जाते हैं।  सत्य यह है कि हमारा अध्यात्मिक दर्शन तार्किक रूप से प्रमाणिक हैं पर कर्मकांडों और आस्था के नाम पर होने वाले नाटकों से भारतीय धर्म और संस्कृति की बदनामी ही होती हैं। जब हम उन संत की कथित समाधि की चर्चा करते हैं तो अभी तक इस प्रश्न का उत्तर उनके शिष्यों ने नहीं दिया कि वह उन्हें चिकित्सकों के पास क्यों ले गये थे? तब उन्हें समाधिस्थ क्यों नहीं माना गया था?
            इस पर चल रही बहसों में अनेक विद्वान संत को समाधिस्थ नहीं मानते पर समाधि के माध्यम से दूसरे की काया में प्रवेश करने के तर्क को स्वीकृति देते हैं।  यह हैरानी की बात है कि पतंजलि योग साहित्य तथा श्रीमद्भागवत गीता के पेशेवर प्रचारक हमारे देश में बहुत है पर उनका ज्ञान इतना ही है कि वह अपने लिये भक्त के रूप में ग्राहक जुटा सकें। स्वयं उनमें ही धारणा शक्ति का अभाव है इसलिये उन्हें ज्ञानी तो माना ही नहीं जा सकता।

पतंजलि योग साहित्य में कहा गया है कि

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जन्मौषधिधिमन्त्रतपःसमाधिजाः सिद्धयः।

            हिन्दी में अर्थ-जन्म, औषधि, मंत्र तथा तप से होने वाली समाधि से सिद्धियां प्राप्त होती हैं।

            भावार्थ-समाधि के यह चार प्रकार ही प्रमाणिक माने जा सकते हैं। जन्म से समाधि से आशय यह है कि जब साधक एक योनि से दूसरी यौनि में प्रवेश करता है तो उसके अंदर असाधारण शक्तियां उत्पन्न हो जाती हैं।  इसका आशय यही है कि जब कोई मनुष्य एक देह का त्याग कर वह दूसरा जन्म लेता है तब अपनी योग शक्ति से अपना भविष्य तय कर सकता है।  यह कतई नहीं है कि किसी जीव के शरीर में बिना प्रवेश कर सकता है।  औषधि से समाधि किसी द्रव्य या भौतिक पदार्थ के सेवन से होने वाली समाधि है।  इसके अलावा मंत्र और तप से भी समाधि की अवस्था प्राप्त की जा सकती है।

            योग साधक जब अपने अभ्यास में परिपक्व हो जाता है तब वह चाहे जब समाधि ले सकता है।  उसके चार प्रकार है पर समाधि की प्रक्रिया के बाद उसकी देह, मन, बुद्धि तथा विचार में प्रकाशमय अनुभव होता है।  जितना ही कोई साधक समाधिस्थ होने की क्रिया में प्रवीण होता है उतना ही वह अंतमुर्खी हो जाता है। वह कभी भी देवता की तरह धर्म के बाज़ार में अपना प्रदर्शन करने का प्रयास नहीं करता।  शिष्य, संपत्ति अथवा सुविधाओं का संचय करने की बजाय अधिक से अधिक अपने अंदर ही आनंद ढूंढने का प्रयास करता है। परकाया में प्रवेश करने की इच्छा तो वह कर ही नहीं सकता क्योंकि उसे अपनी काया में आनंद आता है। समाधि एक स्थिति है जिसे योग साधक समझ सकते हैं पर जिन्हें ज्ञान नहीं है वह इसे कोई अनोखी विधा मानते हैं।  यही कारण है कि अनेक कथित संत बड़े बड़े आश्रम बनवाकर उसमें लोगों के रहने और खाने का मुफ्त प्रबंध करते हैं ताकि उनके भोगों के लिये भीड़ जुटे जिसके आधार पर वह अधिक प्रचार, पैसा तथा प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकें। हम इन संत की समाधि पर पहले भी यह स्पष्ट कर चुके हैं कि प्राण तथा चेतना हीन समाधि पतंजलि योग साहितय के आधार पर प्रमाणिम नहीं मानी जा सकती।
            यहां हम यह भी स्पष्ट कर दें कि लोग अज्ञानी हो सकते हैं पर मूर्ख या मासूम नहीं कि ऐसे पेशेवर संतों के पास जायें ही नहीं।  मु्फ्त रहने और खाने को मिले तो कहीं भी भीड़ लग जायेगी।  इसी भीड़ को भोले भाले या मूर्ख लोगों का समूह कहना स्वयं को धोखा देना है।
पतंजलि योग साहित्य में समाधि से दूसरे की काया में प्रवेश की बात नहीं कही गयी-हिन्दी चिंत्तन 
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

9 नवंबर 2014

सफलता और सपने-हिन्दी कविता(safalta aur sapane-hindi poem)



तारीख बदल रोज बदल जाती
मगर मनुष्य हैं कि
पुराने दिन भुला नहीं पाते।

जिंदगी से संघर्ष में
भाग्य के ज्ञान की
किसी के समझ में नहीं आई,
श्रम और कर्म से भी मंजिल
किसी किसी के पास नहीं आई,
सफलता पास आते ही
लोग  सपनों को सुला देते हैं।

कहें दीपक बापू आकाश में
उड़ने वाले देवता
धरती का दर्द नहीं समझते,
अपने पर नहीं भरोसा
वही लोग उनके लिये
भक्ति का भाव भरते,
जिंदगी चलती कायदे से,
रिश्ता सभी का फायदे से,
फुरसत में यूं ही
धर्म और संस्कृति को
सड़क पर झुला देते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

9 अक्टूबर 2014

वफा से दिवालिया समाज-हिन्दी कविता(vafa se diwaliya samaj-hindi kavita)



मस्तिष्क में विचार से अलग
लोग अपनी जुबान से
दूसरी बात बोलते हैं।

अपनी काली नीयत पर
सफेद पर्दा डालकर
स्वयं को ही देते धोखा
दूसरे के अंदर का जहर
यूं ही तोलते हैं।

कहें दीपक बापू वफा से
दिवालिया हो गया समाज,
स्वार्थियों के सिर पर
डाल रहा ताज,
अपनी कमजोरियों से
टूटे हैं लोग,
छिपा रहे
तन और मन के रोग,
तसल्ली होती उनको
जब दूसरे के गम पर
उसके राज खोलते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

5 सितंबर 2014

जब अंग्रेजी का भाव घट जाये-हिन्दी दिवस पर हास्य कविता(jab inglish ka bhav ghat jaye-hindi comedy poem on hindi diwas)



रास्ते में मिला फंदेबाज और बोला
‘‘दीपक बापू 14 सितंबर का दिन
आने वाला है,
हिन्दी का आकाश
ज़मीन पर छाने वाला है,
समाचारों पर नज़र रखना
शायद कोई सम्मान तुम्हारे लिये
कहीं से आ जाये,
तुम्हारे पर लगा फ्लॉप का
ठप्पा हट जाये।’’

सुनकर हंसे दीपक बापू और बोले
‘‘कभी साहित्य से तुमने दिल
लगाया नहीं,
मान सम्मान के विषय से
कभी दिमाग हटाया नहीं,
चाटुकारिता के कर्म का फल
उपाधियां और सम्मान है,
नहीं सोच सकते वह लेखक
इस बारे में
स्वांत सुखाय की
जिन्होंने  रखी ठान है,
एक कविता लिखकर
बहुत सारे चालाक
साहित्य बाज़ार में तर गये,
जिन्होंने नहीं दिखाया
बिकने का कौशल
उनके शब्द चौराहे पर आये
 फिर अपने घर गये,
हिन्दी अब हमें कहां सम्मान दिलायेगी,
उसका संघर्ष अब तोतली
हिंग्लिश भाषा से है
प्रश्न यह है कि वह स्वयं
अपनी जान कैसे बचायेगी,
भारतीय मुद्रा रुपया
डॉलर और पौंड से
सस्ता होता जा रहा है,
वैसे ही स्कूल का बस्ता
हिन्दी खोता जा रहा है,
पूर्व से उगता है सूरज
भारतीय समाज
पश्चिम में निहार रहा है,
पूर्व से कर ली पीठ
सत्य से हार रहा है,
जब हम जैसे लेखक
सम्मान देने वालों की
योग्यता पर सवाल उठायेंगे,
तक क्या पुरस्कार पायेंगे,
हिन्दी दिवस की हमें भी प्रतीक्षा है
14 सितंबर एक ही दिन होता
जब अंग्रेजी का भाव घट जाये।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

2 जुलाई 2014

यह समय वह समय-हिन्दी व्यंग्य कवितायें(yah samay vah samay-hindi satire poem)



वह खुशी के पल थे निकल गये,
अब दर्द है यह समय  भी  कभी निकल जायेगा,
जिंदगी का हर लम्हा जीती है सांसें
हम चलें या न चलें घड़ी का कांटा आगे बढ़ जायेगा।
कहें दीपक बापू हर इंसान वहमों के साथ चलता है,
मतलब के लिहाज से अपनी उसूल बदलता है,
फरिश्ते का मुखौटा लगाकर हर इंसान मिलता है
पता नहीं कब शैतान जैसा रूप दिखायेगा।
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सर्वशक्तिमान के लिये आस्था वह जता रहे हैं,
अपने विश्वास की ऊंची कीमत बता रहे हैं,
कहें दीपक बापू दिल में बसा है दौलत का ख्याल
पुरानी परंपराओं का गुणगाान करते थकते नहीं
मगर उस पर अंग्रेंजी प्रपंच रचा रहे हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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24 जून 2014

उम्मीद का बोझ-हिन्दी शायरियां(ummid ka bojh-hindi shayriyan)



मुट्ठी में अगर आता सुख तो हम कई किलो भर लेते,
खरीदे गये सामान से मिलता मजा तो ढेर घर में भर लेते।
कहें दीपक बापू सोए तो आलस चले तो थकान ने घेरा
रोज पैदा होती नयी चाहत पर कामयाबी से मन भरता नहीं
वरना हम उम्मीदों का भारी बोझ अपने कंधे पर धर लेते।
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टकटकी लगाये हम उनकी नज़रों में आने का इंतजार करते हैं,
वह उदासीन हैं फिर भी हम उस यार पर मरते हैं।
कहें दीपक बापू कोई हमदर्द बने यह चाहत नहीं हमारी
दिल से घुटते लोग सीना तानते पर तन्हाई से डरते है।ं
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रिश्ते बनते जरूर कुदरत से मगर निभाये मतलब से जाते हैं,
कहीं काम से दाम मिलते कहंी दाम से काम बनाये जाते हैं।
नीयत के खेल में खोटे लोग भी खरे सिक्के जैसे सजते
वफा की चाहत में बदहवास लोग शिकार बनाये जाते हैं।
कहें दीपक बापू दिल के सौदागर जिस्मफरोशी नहीं करते
मोहब्बत के जाल में कमजोर दिमाग लोग फंसाये जाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
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