2 जुलाई 2014

यह समय वह समय-हिन्दी व्यंग्य कवितायें(yah samay vah samay-hindi satire poem)



वह खुशी के पल थे निकल गये,
अब दर्द है यह समय  भी  कभी निकल जायेगा,
जिंदगी का हर लम्हा जीती है सांसें
हम चलें या न चलें घड़ी का कांटा आगे बढ़ जायेगा।
कहें दीपक बापू हर इंसान वहमों के साथ चलता है,
मतलब के लिहाज से अपनी उसूल बदलता है,
फरिश्ते का मुखौटा लगाकर हर इंसान मिलता है
पता नहीं कब शैतान जैसा रूप दिखायेगा।
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सर्वशक्तिमान के लिये आस्था वह जता रहे हैं,
अपने विश्वास की ऊंची कीमत बता रहे हैं,
कहें दीपक बापू दिल में बसा है दौलत का ख्याल
पुरानी परंपराओं का गुणगाान करते थकते नहीं
मगर उस पर अंग्रेंजी प्रपंच रचा रहे हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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