पैसा देकर उन्हें दायें चलाओ, दिखाओ चाहे वामपंथ,
कौड़ी पायें योगी को पुकारें नट, कार्ल मार्क्स को संत।।
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सत्संग छोड़कर करें चर्चा,जंगी विद्वान चलाते हैं बहस,
जन कल्याण का दिखावा,करते बस अपनी पूरी हवस।।
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उनके नारों में क्रांति की चमक, वादों में जोरदार विद्रोह दिखता है,
सबसे लड़ें नकली जंग, शोषण के छोर में भ्रष्टाचार यूं ही छिपता है।।
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सब शोर मचा रहे हैं, देश के मज़दूर और गरीबों की भलाई का,
छद्म है उनकी जंग, लक्ष्य है लूटना कल्याण में मिली मलाई का।।
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एक अक्लमंद ने लूट लिया ज़माने का सामान, भलाई का नाम लेकर,
दूसरे ने देखा पर मुंह फेर लिया, छोड़ी बगावत मलाई का दाम लेकर।।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com
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*एकांत में तस्वीरों से ही दिल बहलायें, भीड़ में तस्वीर जैसा इंसान कहां
पायें।*
*‘दीपकबापू’ जीवन की चाल टेढ़ी कभी सपाट, राह दुर्गम भाग्य जो सुगम पायें।।*
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4 वर्ष पहले