कर्मकांड की गठरी सिर पर रखे हैं, धर्म के पाखंड में हर मिठाई चखे हैं।
‘दीपकबापू’ सर्वशक्तिमान का गायें भजन, मन में स्वाद के कांटे रखे हैं।।
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अपने हिस्से की खुशी उठा लेते हैं, फिर भी आगे के लिये जुटा लेते हैं।
‘दीपकबापू’ मुफ्त का चिराग ढूंढ रहे, अंधेरों में जो सब लुटा देते हैं।।
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मन विज्ञान न जाने भ्रम में अटके हैं, माया ज्ञान बिना लालच में भटके हैं।
‘दीपकबापू’ जुबान में भर लिये शब्द, अर्थ से बेखबर अपमान में लटके हैं।।
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मौके के मेलों में लोगों की भीड़ लगे, मन के बहलने में सब जाते ठगे।
‘दीपकबापू’ एकांत साधना करें नहीं, शोर में करें आशा शायद चेतना जगे।।
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हर पल आदमी की नस्ल बदल जाती, छोटी सोच से याद साथ नहीं आती।
ताकतवर डालें अपने पाप पर परदा, ‘दीपकबापू’ गरीब जुबां बोल नहीं पाती।।
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कोई काम न हो भलाई का व्यापार करें, सेवा का नाम लेकर घर में माल भरें।
‘दीपकबापू’ सजायें बाज़ार में अपनी छवि, विज्ञापन से चमके नाम चिंता न करें।।
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अपने ही मसलों के हल उन्हें नहीं सूझते, बेबसों के लिये वह कहीं भी जूझते।
‘दीपकबापू’ तख्त पाया गज़ब ढाया, अचंभित लोग विकास की पहेली नहीं बूझते।।
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बिना कालापीला किये अमीर नहीं बनते, धरा पर वार बिना शामियाने नहीं तनते।
‘दीपकबापू’ सभी को मान लेते ईमानदार, पकड़े गये चोर नहीं तो साहुकार बनते।।
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बड़े भाग्य माने अगर कोई पूछता नहीं, मुकुटहीन सिर से कोई विरोधी जूझता नहीं।
भीड़ से बेहतर लगे जिंदगी में एकांत, ‘दीपकबापू शोर में श्रेष्ठ विचार सूझता नहीं।।
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पुजते वही छवि जिनकी साफ दिखती, किसी की सोच पर नीयत नहीं टिकती।
‘दीपकबापू’ दौलत के गुलामों की मंडी में, औकात काबलियत से नहीं बिकती।।
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अपना कर्तव्य भूल अधिकार की बात करें, फल चाहें पर दायित्व लेने से डरें।
‘दीपकबापू’ मुख से शब्द बरसायें बेमौसम, दिल में कीचड़ जैसी नीयत धरें।।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर