26 दिसंबर 2014

चिंत्तकों के महल-हिन्दी कविता(chinttakon ke mahal-hindi poem)


शांति के लिये
कबूतर उड़ाते
विकास के लिये
सपनों का बाज़ार लगाते हैं।

सोते हैं आरामदायक बिस्तर पर
बेघरों के लिये चिंत्तन करते
अपने महल दर्शनीय बनाते है।

कहें दीपक बापू जनहित पर
समाज सेवकों की सेना
चली आ रही है,
प्रजा शब्दों से ही
छली जा रही है,
सभी अपने इष्ट का रूप
बताते सर्वश्रेठ
नाम लेकर नामा कमाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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