हृदय में भावना
उमड़ते समंदर में
मोती जैसे भाव
भरे हैं
कोई ढूंढे तो।
जीभ के पर्वत से
बह सकती है
शब्दों से भरी
वाणी
नदी की तरह
अपनी धारा से
ज़माने के हृदय
में
शीतलता बरसा
सकती है
कोई बोले तो।
कहें दीपक
मुश्किल होता है
जब आंखें बाहर
देखती हैं
अंदर रहता है
अंधेरा
कान आतुर है
प्रिय
स्वर सुनने के
लिये
अंदर बहरेपन का
होता पहरा
अपनी उंगली
सारी दुनियां की
तरफ
दुश्मन बताने के
लिये उठाते
अपनी सोच में
ढेर सारे कांटे
मिल जायेंगे
कोई खोले तो।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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