भारत में चलने वाली एक क्लब स्तरीय प्रतियोगिता में पाकिस्तानी खिलाड़ियों को नीलामी में किसी ने नहीं खरीदा तो दोनों देशों में हो हल्ला मच गया है। किसी मनुष्य की नीलामी! बहुत आश्चर्य हो रहा है! यह तो गनीमत है कि इस देश में अधिकतर संख्या अभी भी अशिक्षित और अखबार न पढ़ने वाले लोगों की है वरना सारे देश मुंह खुला रह जाता और हर घर में चर्चा हो रही होती। कुछ लोग दुःखी होते तो कुछ खुश!
जब हम जैसा लेखक लिखता है तो अध्यात्म या धर्म की चर्चा न करे यह संभव नहीं हो पाता क्योंकि कहीं न कहीं लगता है कि एक तरफ लोग भारत के विश्व में अध्यात्मिक गुरु होने की बात करते हैं दूसरी तरफ अपने ही लोग जाते उल्टी दिशा में ही है। भारत से बाहर पनपी विचाराधाराओं के बारे में कहा जाता है कि वह मनुष्य को मनुष्य की गुलामी से बचाने के लिये प्रवाहित हुईं हैं। एक पश्चिमी देव पुरुष ने तो अपने कबीले के लोगों को गुलामी से मुक्ति के लिये संघर्ष किया। उसने गुलामी से अपने लोगों को मुक्त होने की प्रेरणा दी। उसकी जीवनी पर एक ंविदेशी हिन्दी टीवी चैनल ने ही कार्यक्रम दिखाया था जिसमें गुलामों की बकायदा नीलामी दिखाई जा रही थी। भारत में बंधुआ मजदूरी की परंपरा रही है पर उसमें कहीं ऐसी नीलामी की चर्चा नहीं होती जिसमें एक मालिक अपने गुलाम को दूसरे मालिक के हाथ बेचता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जिस गुलामी और नीलामी की परंपरा का पश्चिमी सभ्यता ने करीब करीब त्याग दिया है उसी को भारतीय धनपतियों ने क्रिकेट के सहारे यहां जिंदा किया। धन्य है धन की महिमा!
क्ल्ब स्तरीय प्रतियोगिता को कोई अधिक भावनात्मक महत्व नहीं है और इसके मैच क्रिकेट के वही समर्थक देखते हैं जिनको उस समय कोई कामकाज नहीं होता है-जिन लोगों को कामकाज होता है वह ऐसे मैच में समय खराब नहीं करते क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मैच ही उनको इसके लिये उपयुक्त लगते हैं। कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि यह मैच दर्शकों के नंबर एक धन के साथ ही उस पर दांव खेलने वालो मूर्खों के धन से भी चलते हैं। मैच फिक्सिंग की वजह से बदनाम क्रिकेट हुई है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मैच जोखिम वाले हो गये हैं इसलिये इन क्लब स्तरीय मैचों को आयोजित किया जा रहा है क्योंकि इसमें राष्ट्रप्रेम जैसी कोई चीज नहीं होती और फिक्सिंग की बात सामने आने उसके आहत होने वाली कोई बात हो।
ऐसे में पाकिस्तानी खिलाड़ियों के लिये नीलाम बोली न लगाना कोई राष्ट्रीय विषय नहीं होना चाहिये था पर इसे बनाया गया। पाकिस्तान में मातम मन रहा है तो उसके लिये स्यापा करने वाले कुछ लोग यहां भी हैं। उससे अधिक हैरान होने वाली बात तो यह कि उस पर खुश होने वाले भी बहुत हैं। कुछ लोगों ने तो भारतीय नेताओं पर आक्षेप करते हुए धनपतियों को महान बता डाला तो कुछ ने पाकिस्तान को अपने यहां भी ऐसा आयोजन करने का मजाकिया संदेश दिया। लगता है कि लोग समझे ही नहीं। लोग इसे पाकिस्तान पर एक फतह समझ रहे हैं और भारतीय धनपतियों को नायक! बाजार, सौदागर और उसके बंधुआ प्रचार माध्यमों का खेल को अगर नहीं समझेंगे तो यह भ्रम बना रहेगा।
जब भारत में कुछ लोग पाकिस्तानी खिलाड़ियों के लिये नीलाम बोली न लगने का जश्न मना रहे थे तब उस क्लब स्तरीय आयोजकों की एक प्रवक्ता अभिनेत्री एक संवाद सम्मेलन में यह बता रही थी कि ‘पाकिस्तान के खिलाड़ियों को यहां के ही कुछ लोगों की धमकियों की वजह से यहां न बुलाया गया।’
यह होना ही था। भारत की फिल्म और क्रिकेट को आर्थिक रूप से प्रभावित करने वाली कुछ ताकतें पाकिस्तान में हैं या नहीं कहना कठिन है पर इतना तय है कि भारतीय धनपतियों का मायावी संसार मध्य एशिया पर बहुत निर्भर करता है। पूरा मध्य एशिया भारत को रोकने के लिये पाकिस्तान का उपयोग करता है। यह संभव नहीं है कि भारत की कुछ आर्थिक ताकतें पाकिस्तान की अवहेलना कर सकें। इनकी मुश्किल दूसरी भी है कि पश्चिम के बिना भी यह भारतीय आर्थिक ताकतें नहीं चल सकती क्योंकि अंततः उनके धन संरक्षण के स्त्रोत वहीं हैं। यही पश्चिम पाकिस्तान से बहुत चिढ़ा हुआ है। पहले इस निर्णय के द्वारा पश्चिमी देशों को भी पाकिस्तान से दूरी का संकेत भेजा गया और भारत के कुछ संगठनों की धमकी की बात कर पाकिस्तान पर मरहम लगाया गया। भारतीय धनपतियों के नायकत्व की पोल तो उनकी प्रवक्ता वालीवुड अभिनेत्री के बयान से खुल ही गयी। इस लेखक ने कल अपने एक लेख में पाकिस्तान प्रचार युद्ध में भारत से हारने पर अपने मध्य एशिया मित्रों की मदद लेने का जिक्र किया था। यही कारण है कि क्लब स्तरीय प्रतियोगिता के आयोजकों को यह सब कहना पड़ा कि ‘यहां के कुछ संगठनों की धमकियों की वजह से ऐसा किया गया।’
यह संगठन कौन है? इशारा सभी समझ गये पर सच यह है कि ‘पाकिस्तानी खिलाड़ियों को यहां न बुलाने के लिये किसी ने बहुत बड़े संगठन ने धमकी दी हो ऐसा कहीं अखबारों में पढ़ने को नहीं मिला। इन संगठनों से लोगों को जरूर भारतीय धनपतियों का आभारी होना चाहिये जो उन्हें बैठे बिठाये इस तरह का श्रेय मिल गया।
हमें इन बातों पर यकीन नहीं है। कम से कम क्रिकेट में अब हमारे अंदर देशप्रेम जैसा कोई भाव नहीं है क्योंकि हमारे देश का राष्ट्रीय खेल तो हाकी है। इस निर्णय के पीछे दूसरा ही खेल नजर आ रहा है। इस तरह के फैसले में क्या छिपा हो सकता है? यह क्रमवार नीचे लिख रहे हैं।
1-सन् 2007 में पचास ओवरीय क्रिकेट प्रतियोगिता में भारत के हारने के बाद क्रिकेट की लोकप्रियता एकदम गिर गयी। तीन महान खिलाड़ियों के विज्ञापन तक टीवी चैनलों ने रोक दिये। एक वर्ष बाद हुई बीस ओवरीय प्रतियोगिता में विश्व कप में भारत जीता(!) तो फिर लोकप्रियता बहाल हुई। उसके बाद ही यह क्ल्ब स्तरीय प्रतियोगिता भी शुरु हुई और उसमें वही तीन महान खिलाड़ी भी शामिल होते हैं जिनको अभी तक भारत क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की की बीस ओवरीय टीम के योग्य समझा नहीं जाता मगर बाजार के विज्ञापनों में उनकी उपस्थिति निरंतर रहती है। इन्हीं खिलाड़ियों की छवि भुनाने के लिये यह प्रतियोगिता आयोजित की जाती है इसमें पाकिस्तानी खिलाड़ियों का कोई अधिक महत्व नहीं है।
2-अंतिम बीस ओवरी प्रतियोगिता पाकिस्तान ने जीती और भारत का प्रदर्शन अत्यंत निराशाजनक रहा। इससे यकीनन क्रिकेट की लोकप्रियता गिरती लग रही है। कम से कम इस बीस ओवरीय प्रतियोगिता की लोकप्रियता अब संदिग्ध हो रही है। ऐसे में हो सकता है कि भारत के लोगों में राष्ट्रीय प्रेम और विजय का भाव पैदा कर इसके लिये उनमें आकर्षण पैदा करने का प्रयास हो सकता है। वैसे शुद्ध रूप से क्रिकेट प्रेमी अंतर्राट्रीय मैचों में दिलचस्पी लेते हैं पर ऐसे नवधनाढ्य लोगों के लिये यह क्लब स्तरीय मैच भी कम मजेदार नहीं होते। दूसरी बात यह है कि इन प्रतियोगिताओं में खेलने वालों को विज्ञापन के द्वारा भी धन दिलवाना पड़ता है। 26/11 के बाद भारत के जो स्थिति बनी है उसके बाद फिलहाल यह संभव नहीं है कि भारत में किसी पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ी का विज्ञापन देखने को लोग तैयार हों।
3-संदेह का कारण यह है कि अनेक देशों की टीमों के खिलाड़ियों की बोली नहीं लगी पर पाकिस्तान का जिक्र ही क्यों आया? अभिनेत्री प्रवक्ता आखिर यह क्यों कहा कि ‘यहां के कुछ लोगों की धमकी की वजह से ऐसा हुआ’, अन्य देशों की बात क्यों नहीं बतायी। संभव है कि यह प्रश्न ही प्रायोजित ढंग से किया गया हो। संदेह के घेरे में अनेक लोग हैं जो पाकिस्तान के लिये अपना प्रेम प्रदर्शन कर रहे हैं पर दूसरों के लिये खामोश हैं। दरअसल भारत में एक खास वर्ग है जो पाकिस्तान की चर्चा बनाये रखकर वहां के लोगों को खुश रखना चाहता है।
हमने पहले भी लिखा था कि भारत और पाकिस्तान का खास वर्ग आपस में मैत्री भाव बनाये रखता है और इस तरह उसका व्यवहार है कि दोनों देशों के आम नागरिक ही एक दूसरे के दुश्मन हैं। अभिनेत्री के बयान से यह सिद्ध तो हो गया कि कम से कम उसके अंदर पाकिस्तान के लिये शत्रुता का भाव नहीं है और पाकिस्तान क्रिके्रट खिलाड़ी भी भारत के मित्र हैं। इसका सीधा आशय यही है कि आम लोग ही पाकिस्तान के आम लोगों के शत्रु हैं।
कहने का अभिप्राय यह है कि पाकिस्तान के खिलाड़ियों की इस प्रतियोगिता में नीलाम बोली न लगना इस देश में राष्ट्रप्रेम के जज़्बात भुनाकर उसे अपने फायदे के लिये भी उपयोग करना हो सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि धनाढ्य वर्ग तो वैसे भी अपने व्यवसायिक हितों की वजह से नहीं लड़ता ऐसे आर्थिक उदारीकरण के इस युग में बाजार और सौदागर से एक बाजारु खेल में देशप्रेम की छवि दिखाने की आशा करना बेकार है। खासतौर से तब जब यहां का भारत का एक बहुत बड़ा तबका क्रिकेट को जानता नहीं है या फिर इसे अधिक महत्व नहीं देता। अलबत्ता बौद्धिक विलास में रत लोगों के लिये यह एक अच्छा विषय भी हो सकता है। एक आम लेखक के लिये यह संभव नहीं है कि वह कहीं से वास्तविक तथ्य जुटा सके। ऐसे में अखबारों और टीवी पर प्रसारित खबरों के आधार पर ही हम यह बातें लिख रहे हैं। सच क्या है! यह तो खास वर्ग के लोग ही जाने!
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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2 टिप्पणियां:
दीपक जी, हर चीज बाजारू ही है. क्या खेल और क्या व्यापार और क्या युद्ध के औजार. कारगिल युद्ध के दौरान जो बहु राष्ट्रीय कम्पनियां यहां के शहीदों के लिये कुछ करने का दिखावा या कर रही थीं वही काम वे पाकिस्तान में कर रही थीं. यह हो सकता है कि सेना के डर के कारण पाकिस्तानी खिलाडियों को इंडियन प्रीमियर लीग में न खरीदा गया हो, लेकिन क्या यह ठीक है कि पाकिस्तान बम बोता रहे और हम फूल देकर फूल बनते रहें. राजनीतिबाजों की छोड़ दीजिये. उनका काम ही बेवकूफ बनाना है. आपका यह कहना ठीक हो सकता है कि क्रिकेट के इस प्रारूप और देशप्रेम को दिखाने का यह पैटर्न दिखावा मात्र है.
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