2 मई 2015

राजमहल हो या आश्रम-हिन्दी कविता(janta ki jaroorat-hindi kavita)

जनता की जरूरत
किसी को राजा
किसी को दलाल बनाती है।

चरवाहे के डंडे से
जनता चलती भेड़ की तरह
पर उसे अपनी ढाल बताती है।

कहें दीपक बापू मन के वैरागी
कभी बाज़ार नहीं सजाते,
प्रचार के विज्ञापन देने
कहीं नहीं जाते,
राजमहल हो या आश्रम
दलालों के सामने
आम इंसान भेड़ है
यह उसकी चाल भी बताती है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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