वैलेंटाइन डे पर वह
कुछ प्रेम इस तरह जताते हैं।
होली से पहले ही अपने इष्ट को
सरेराह मसखरी बनाते हैं।
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आया फंदेबाज और बोला
‘दीपक बापू,
आ रहा है वैलंटाईन डे
कोई जोरदार श्रृंगार रस से भरी
कविता कागज पर लिखकर
ब्लाग पर सजाना,
शायद लग जाये हिट का खजाना,
यह हास्य कवितायें लिखना
पुराने जमाने की बात है,
प्रेम के लिये रौशन है सभी के दिल
हास्य के लिये तो बस अंधेरी रात है,
तुम भी वही राह चलो
जिस पर चल रहा है जमाना।’
सुनकर पहले गंभीर हुए और फिर
मुस्कराते हुए कहें दीपक बापू
‘मुश्किल यह है कि
इस नये जमाने के प्रेम पर
हमको तो बस हंसी ही आती है
सरेराह गले में हाथ डालकर
घूमने में
या बार में बीयर पीने के
प्रेम से रिश्ते की बात हमारे
समझ में नहीं आती है।
खामोशी बोलती है
बंद आंखें भी राज खोलती हैं
प्रेम कोई ऐसी शय नहीं
जिसे बाजार में बेचने के लिये सजाना,
ऐसा करके बस यूं ही
मुफ्त में जमाने को हंसाना।
फिर छोटे पर्दे पर
हर साल देखकर हमें होली की याद आती है
दृश्यों में कुछ भाग रहे हैं प्रे्रम करते हुए
पीछे विरोधी दौड़ रहे
आशिक माशुका भाग रहे डरते हुए,
इस धींगामुश्ती में होली की याद आती है
जो एक पखवाड़े बाद रंग दिखाती है,
कुछ लोग प्रेम पर बंदिश को लेकर करते स्यापा,
शब्दों के चयन में खो बैठते अपना आपा,
यह देखकर लोग खुद ही हंसते हैं
उन्हें भला क्या हंसाना।’
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com
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mahalon mein kadam jama dtla-DeepakBapukahin)
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*जिसमें थक जायें वह भक्ति नहीं है*
*आंसुओं में कोई शक्ति नहीं है।*
*कहें दीपकबापू मन के वीर वह*
*जिनमें कोई आसक्ति नहीं है।*
*---*
*सड़क पर चलकर नहीं देखते...
6 वर्ष पहले
1 टिप्पणी:
यह देखकर लोग खुद ही हंसते हैं
उन्हें भला क्या हंसाना।
हँसते हुए को कौन हँसा सकता है भला
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