6 फ़रवरी 2010

सपने ही सच के गवाह हो गए-हिंदी व्यंग्य कविताएँ (sapne aur sach-hindi hasya kavitaen)

कुछ मुद्दे हल ही नहीं हुए
पर हवा हो गये,
क्योंकि नये मुद्दों ने जन्म लिया
जो इंसान की दिमागी फितरतों की दवा हो गये।
ज़माना चला है ख्वाबों की राह
जहां सपने ही सच के गवाह हो गये।
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वादा कर वह भूल जाते हैं,
देने की लिए नया जो लाते हैं।
सुनने वाले भी भला कहाँ याद रखते
नए में मशगूल हो जाते हैं।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com

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