कुछ मुद्दे हल ही नहीं हुए
पर हवा हो गये,
क्योंकि नये मुद्दों ने जन्म लिया
जो इंसान की दिमागी फितरतों की दवा हो गये।
ज़माना चला है ख्वाबों की राह
जहां सपने ही सच के गवाह हो गये।
-------
वादा कर वह भूल जाते हैं,
देने की लिए नया जो लाते हैं।
सुनने वाले भी भला कहाँ याद रखते
नए में मशगूल हो जाते हैं।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियरपर हवा हो गये,
क्योंकि नये मुद्दों ने जन्म लिया
जो इंसान की दिमागी फितरतों की दवा हो गये।
ज़माना चला है ख्वाबों की राह
जहां सपने ही सच के गवाह हो गये।
-------
वादा कर वह भूल जाते हैं,
देने की लिए नया जो लाते हैं।
सुनने वाले भी भला कहाँ याद रखते
नए में मशगूल हो जाते हैं।
http://anant-shabd.blogspot.com
-----------------------------
‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें