19 सितंबर 2017

गुनाहगारों के घर पर अब पहरेदार खड़े हैं-दीपकबापूवाणी (gunahagaron ke ghar par ab Pahredar Khade Hain-DeepakBapuWani)

गुनाहगारों के घर पर अब पहरेदार खड़े हैं, बदनाम होने से उनके नाम भी बड़े हैं।
‘दीपकबापू’ जितनी भी दूर तक डालते नज़र, अब नहीं टूटते जो भरे पाप के घड़े हैं।।
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चंदन का टीका सिर पर लगा लिया, पैसे प्रतिष्ठा के लिये ज्ञान से दगा किया।
‘दीपकबापू’ पाप की चमक में खोये रहे, दंड में मिली हथकड़ी ने जगा दिया।।
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वादे लेकर बाज़ार में वह हमेशा आते, हर बार बेबसों में लालच का यकीन जगाते।
‘दीपकबापू’ अमल करने की शक्ति नहीं, बाज़ार में पुराने इरादे में नये नारे सजाते।।
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रोज उधार का घी पिये जा रहे हैं, ब्याज की सांसों से जिये जा रहे हैं।
‘दीपकबापू’ बहीखाते जांचने से डरते, मौन आंकड़े हैरान किये जा रहे हैं।।
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नारों के साथ अब ऊबने लगे हैं, बद से बदतर हालातों में डूबने लगे हैं।
‘दीपकबापू’ थके कान रखना समझें अच्छा, भक्तिरस में हम कूदने लगे हैं।।
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कर लगाकर महंगा हर सामान करेंगे, पीड़हरण के लिये देशभक्ति गान करेंगे।
‘दीपकबापू’ अर्थशास्त्र कभी पढ़े नहीं, परायी जेब काटकर अपनी जेब ही भरेंगे।।
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भलाई के व्यापारी किसी के नहीं सगे, ग्राहक को हर बार नये ढंग से ठगे।
‘दीपकबापू’ पहरेदारी का जिम्मा लेकर खड़े, चोरों से साझेदारी करने लगे।।
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