मशहूर से ज्यादा बदनाम चलता है,
भले से ज्यादा बेईमान पलता है।
जवान सूरज जंग लड़ता है
शाम चमके जब सूरज ढलता है।
---
जिंदगी का आंनद रस
कभी ग्लास में भरकर
पीया नहीं जाता।
टुकड़ों में बंटा इंसान
एक लय में जिया नहीं जाता।
--
तुम पसंद करो या नहीं
हम कहने से बाज नहीं आयेंगे।
हमारी खामोशी में भी ताकत है
दिल्लगी का राज नहीं बतायेंगे।
--
अमीर अपनी दौलत
गरीब कौड़ी बचाने के लिये
जूझ रहा है।
वह कौन है जो
ज़माने की पहेली बूझ रहा है।
--
तरक्की अकेला बना देती है,
इज्जत भी भय घना देती है।
आमों से लदा पेड़ अदब से झुका
एक मणि विषधर बना देती है।
--
अज्ञात के भय से अभयदान बिकता है,
पर्दे का शेर धरा पर नहीं टिकता है।
‘दीपकबापू’ कागज पर स्याही फैलाकर
कोई सिक्कों के लिये भ्रम लिखता है।।
--
क्या करें मन की बात
कान होते हुए लोग बहरे हैं।
किसे अपना दर्द बया करें
हमदर्दों के भी रोग गहरे हैं।
---
उनकी आंख कान पर क्या भरोसा
जो स्वयं विश्वास से टूटे हैं।
उनके साथ से क्या उम्मीद
जो अपनी स्वयं अपनी आस से रूठे हैं।
-
सड़क पर इंसान को
राम कृष्ण का नाम याद आता है।
महल में बैठते ही चिंत्तन से
भक्ति का काम बाद आता है।
---
पुराने यारों की अंतर्मन में
बहुत सारी यादें पाले हैं।
ज़माने के शोर में फंसा दिल
उनपर उदासीन जाले हैं।
--
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें