बस कुछ ख्वाहिशें ही तो थीं
जिन्हें हमने मरने दिया,
अपनी जिंदगी में
आजादी से यूं ही चलने दिया।
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असल हो या सपना है,
जिंदगी का हर पल अपना है।
हर दर्द मिटाकर ‘दीपकबापू
हसीन पल दिल पर छपना है।
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देशभक्ति का पेशा कर लेते हैं,
भावना से अपनी जेब भर देते हैं।
‘दीपकबापू’ राम पर ही रखें भरोसा
स्वार्थी इंसान नाम भक्त धर लेते हैं।
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अपने हिस्से के पल सभी जी लेते हैं,
खुशी चखते गम भी पी लेते हैं।
‘दीपकबापू’ हिसाब लगाते बेकार
सच के डर से झूठा मूंह सी लेते हैं।
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आपने दिल में चाहत की आग जगाते,
मजबूरियों के स्वयं पर दाग लगाते।
‘दीपकबापू’ रंग लगा कचड़ा घर में
सजाकर शान से प्रशस्ति राग गाते।
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धोखा किसी से नहीं किया
इसलिये मशहूर भी नहीं हुए।
‘दीपकबापू’ हाथ पाप की तरफ बढ़ा नहीं
जिंदगी से दूर भी नहीं हुए।
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