15 अप्रैल 2016

अपने अपने आशियाने-हिन्दी कविता (Apane Apane Ashiyane-Hindi Poem)

अपने अपने आशियाने
सजाने में सभी लगे हैं।

अपने महंगे महलों में
अमीर सो नहीं पाते
गरीब भी झौंपड़ी में जगे हैं।

कहें दीपकबापू द्वंद्वों पर
चल रहा पूरा समाज
जिनके सपने साकार हुए
वह चल पड़े
दूसरे के पीछे
जो नाकाम हुए
वह ख्याली पुलाव पकाने में
अब भी लगे हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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