24 अक्तूबर 2016

हमारे अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार पुत्रमोह के सामने भातृप्रेम कभी नहीं टिक सकता-हिन्दी संपादकीय(Putramoh ke samne bhatraprem kabhi Tik nahin sakta-

अगर भारतीय मीडिया के बुद्धिमानों ने प्राचीन ग्रंथ पढे़ होते तो समझ जाते कि भातृमोह में कोई अंधा नहीं होता-धृतराष्ट्र अंधे थे पर पुत्रमोह ने उनकी बुद्धि भी छीन ली। वैसे भी मोह का दूसरा नाम पुत्र ही होता है। यह मोह ज्ञानी से ज्ञानी आदमी में रहता है-वेदव्यास जैसे ऋषि में इससे नहीं बच पाये तो सामान्य जन से अपेक्षा या आशंका दोनों ही व्यर्थ ह।ै यह मोह तो देह के साथ ही जाता है। इस पर पुत्र इकलौता हो तो यह सोचना भी नहीं चाहिये कि पिता उस पर भातृमोह में वक्र दृष्टि डालेगा। मीडिया एक दिन नहीं बरसों लगा रहे उसे कोई ऐसा उदाहरण नहीं मिलेगा जहां किसी ने पुत्र मोह त्यागकर भ्राता के हित साधे हों। मनृस्मृति में तो कहा गया है कि ‘बड़ा पुत्र अयोग्य भी हो तो उसका सम्मान करना चाहिये।’
आज के लोकतांत्रिक युग में तो अनेक ऐसे महारथी हैं जो जनता में अपनी लोकप्रियता स्थापित करने के साथ अपने पुत्र के लिये भी भविष्य का मार्ग बनाते हैं। ऐसे में किसी ने अपने सामने ही पुत्र को स्थापित कर दिया है और भातृ मोह में उसे उखाड़ देगा-ऐसी सोच आजकल के कच्ची बुद्धि के मीडिया कर्मियों की ही हो सकती है। तरस उस भ्राता पर भी आता है तो ऐसी अपेक्षा अपने बड़े भाई से पुत्रमोह के त्याग के रूप में करे।
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नोट-इसका उत्तरप्रदेश के ‘गृहक्लेशनाटक’ से कोई संबंध नहीं है। यह सार्वभौमिक सत्य है जिसकी खोज अपने अध्यात्मिक ग्रंथों से की है। हम यह हमेशा दावा भी करते हैें कि हिन्दू धार्मिक ग्रंथ ज्ञान और विज्ञान के सत्य इस सीमा तक खोज चुके हैं कि अब इस धरती पर कोई दूसरा रहस्या उजागर करने लायक रहा ही नहीं है। पंथनिरपेक्ष नहीं मानेंगे पर यह सत्य उनके साथ लगा ही है। बात समाजवाद की करेंगे और उसकी आड़ में अपने परिवार का भविष्य चमकायेंगे।

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