अच्छा ही हुआ कुदरत ने
इंसान की देह फूलों जैसी
सुुगंधित नहीं बनायी
वरना दुर्गंध बरसाने के लिये
तरसा होता।
जब लगाते होठों से जाम
गला तर करने के लिये
कोई पिलाता नहीं।
जब मांगते रोटी
पेट भरने के लिये
कोई खिलाता नहीं।
कहें दीपकबापू हाथ उठाकर
मांगने वाले कभी बड़े नहीं होते
बिना स्वार्थ के कोई
सम्मान में गर्दन हिलाता नहीं है।---------
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