17 जुलाई 2016

विज्ञापन का झंडा- हिन्दी क्षणिकायें (Vigyapan ka Jahnda-Hindi Short Poem)


खामोश
उसके पीछे क्रांति आ रही है।
पता नहीं क्यों
बूढ़ी तस्वीर के
नई होने की भ्रांति छा रही है।
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उछलकूद करते हुए
पर्दे पर छाये
भ्रम यह कि हम नायक हैं।

पता नहीं उन्हें
वह तो विज्ञापन का
झंडा ढोले वाले सहायक हैं।
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तुम ख्वाब हो
हमेशा बने ही रहना।
मत करना यकीन
कभी हम पर
सच की धारा में
नहीं आता बहना।
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एक दूसरे की नीयत पर
सभी शक करते।
फिर भी अपने नाम
उम्मीद का हक भरते।
लोग वफा बोते नहीं
दूसरा उगाये
डूबने तक इंतजार करते
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अपनी जिद्द से
कभी दुनियां नहीं
बदल पाती।
जिद्द बदलकर देखो
दुनियां की चाल
बदली नज़र आती।
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भूखे का दर्द भूखा
प्यासे का दर्द प्यासा ही
समझ पाता है।

जिसे नहीं अहसास
वह मधुर स्वर में
दर्दीले गीत गाता है।
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अपना सबकुछ लुटाकर भी
किसी इंसान को
खुश नहीं कर पाये।

तब समझना अपनी औकात
उसकी जरूरत के
बराबर नहीं कर पाये।
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