इंसान के हृदय में
प्रशंसा पाने की इच्छा
मसखरा बना देती है।
ज्ञानी दिखने की सोच
किताबों का कीड़ा
बना देती है।
कहें दीपकबापू साधना में
मौन से मिले आनंद
संपति संग्रह की कामना
बकरा बना देती है।
-------------
यह अव्यवसायिक ब्लॉग/पत्रिका है तथा इसमें लेखक की मौलिक एवं स्वरचित रचनाएं प्रकाशित है. इन रचनाओं को अन्य कहीं प्रकाशन के लिए पूर्व अनुमति लेना जरूरी है. ब्लॉग लेखकों को यह ब्लॉग लिंक करने की अनुमति है पर अन्य व्यवसायिक प्रकाशनों को यहाँ प्रकाशित रचनाओं के लिए पूर्व सूचना देकर अनुमति लेना आवश्यक है. लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें