फंदेबाज बोला‘बासी खाने पर
पर देश में बवाल
मचा है,
यहां गरीब ज्यादा
हैं या भूखे
यह सवाल बचा है,
हर प्रकार का अन्न
यहां
फिर भी भुखमरी है,
सोने के भंडारों के
बीच
गरीबी भरी है,
इन विरोधाभासों पर
कुछ हमें समझाओ।’’
सुनकर हंसे दीपक
बापू
‘‘प्रकृत्ति
की कृपा तो
अपने देश पर बहुत
हुई,
अटकी रही फिर भी
लोभ पर सुई,
दो हजार साल तक
इस देश की गुलामी
का
कुछ लोगों को भ्रम
है,
सच यह है कि
जीभ के स्वाद
और दिमाग में भरी
लालच के
जाल में फंसे होने
का यह क्रम है,
अरे क्या मुगलों ने
राज किया,
क्या अंग्रेजों ने
काज किया,
मैगी ने जीभ पकड़कर,
पेप्सी और कोला ने
गला जकड़कर,
भारत के मानस पर
बंधन डाल दिया,
स्वदेशी चीज लगती
पराई
विदेशी बन जाती
पिया,
फंदेबाज हम तुम्हें
क्या
समझा सकते,
इस पर हम अपनी राय
नहीं रखते,
तुमने खाया बासी
खाना
गटका शीतल पेय
विरोधाभास में जीने
की
कला तुम्हीं हमें
बताओ।’’
---------------
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें