21 अक्तूबर 2014

आधुनिक समाज सेवक-हिन्दी कविता(adhunik samaj sewak-hindi poem)



अपने मुख से
बड़े बड़े शब्द बोलने वाले
हर कदम पर मिलते हैं वीर।

अपने आसन से उठते तो
पांव कांपते हैं,
इशारे के लिये उठाते हाथ
उनके फेफड़े कांपते हैं,

बोलते तो चीखते लगते
भाषा में नहीं होते
उनके तरकश में व्याकरण के तीर।

कहें दीपक बापू आधुनिक रथो पर
सवार है हजारों समाज सेवक
त्याग के दावे करते,
गरीब को  न मिल जाये
पूरी रोटी
इस ख्याल से भी डरते,
हंसते हैं मन ही मन
दूसरे को दर्द पर
बाहर दिखावा करते जैसे हों गंभीर।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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