21 अक्तूबर 2008

जैसे कोई बम पहने हों-हास्य कविता


जब से मोबाइल की बैटरी
फ़टने की खबर आई है लोग सहमे हैं
जिनके लिये मोबाइल
कोई फोन नहीं बल्कि गहने हैं
बैटरी खराब होने और
उसके फटने के भय से
लोग इधर-उधर
कर रहे हैं पूछताछ
जैसे कोई बम पहने हैं
मोबाइल फोन में खरा सोने की
तरह माने जाने वाली कंपनी का नाम
अब पानी में लगा बहने है

वाह रे बाजार तेरा खेल
जो मीडिया बनता है दोस्त
बडी-बडी कंपनियों का
दुश्मन बनते उसे देर नहीं लगती
लोकतंत्र में मीडिया के होते लोगों के
आंख, कान और अकल में प्राण
जब वह खुल हों तो
मीडिया भी बदल जाता है
दिखावे ले लिये ही सही
जनहित पर उतर आता है
अस्तित्व है तो विज्ञापन
फिर भी मिलते रहेंगे
जनता के दृष्टि में गिर गये
तो कंपनी वाले भी नहीं पूछेंगे
भौतिक साधन के उपयोग से
जो रचे गये हैं आडंबर
सब एक-एक न दिन ढहने हैं
अभी तो शुरूआत है यह
समय को कई ऐसे किससे कहने हैं

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