इंटरनेट कनेक्शन जो लोग लगवा रहे हैं वह इसके बहुद्देशीय उपयोग और लिखने पढ़ने के लिये जो सुविधायें उपलब्ध हैं उसके बारे में बहुत कम जानते हैं। हिंदी में लिखा और पढ़ा जा सकता है इसकी जानकारी तक उन लोगों को नहीं है। वह जानकार आदमी से कहते हैं कि ‘यार, एक दिन आकर हमें इंटरनेट के बारे में बता जाओ।’
ऐसा लगता है कि इंटरनेट विशेषज्ञों ने यह मान लिया है कि यह इंटरनेट केवल छात्रों और युवाओं के उपयोग के लिये है और वह भी केवल शैक्षणिक ज्ञान और मनोरंजन के लिये। यही कारण है कि इसके बहुद्देशीय उपयोग का प्रचार करने के लिये युद्धस्तर पर कोई प्रयास उन्होंने नहीं किया।
अपना अपना नजरिया है। प्रबंध में कमजोर हम भारतीयों के बारे में क्या कहा जा सकता है। इतने सारे इंटरनेट कनेक्शन हिंदी भाषी क्षेत्रों में है पर हिंदी में लिखना पढ़ना एक आदत नहीं बन पाया। यह आदत बनने में कम से कम बीस बरस लग जायेंगे तब तक इन कनेक्शनों का आकर्षण भी समाप्त हो जायेगा यह बात समझ लेना चाहिये। एक बात तय रही कि केवल छात्रों और युवाओं के शैक्षणिक ज्ञान और मनोरंजन प्राप्त करने की दम पर इतना बड़ा अंतर्जाल लंबे समय तक लोकप्रिय नहीं रह पायेगा। अब सवाल यह है किया क्या जाये?
अधिकतर लोग अपने बच्चों की शिक्षा और मनोरंजन के लिये कनेक्शन ले रहे हैं पर उनकी यह इच्छा होती है कि वह भी इसका उपयोग करें। वह जाने कि यहां पर क्या अनोखा देखने, पढ़ने और समझने को मिल रहा है। वह इस विश्व से सीधे जुड़ना चाहते हैं। मगर उनकी इच्छायें अधूरी रह जाती हैं जब इसके लिये उनको कार्यसाधक ज्ञान नहीं होता।
याद रखने वाली बात यह है कि इस देश में एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो इंटरनेट से जुड़ना चाहता है पर कार्यसाधक ज्ञान न होने के कारण वह कुछ नहीं कर पाता। फिर सीखने के लिये वह प्रतिदिन इतना समय बरबाद नहीं करना चाहता कि उससे उसकी दिनचर्या प्रभावित हो। कार्यसाधक ज्ञान के लिये उसे साइबर कैफ या कंप्यूटर ट्रैनिंग सेंटरों के भरोसे छोड़ने का मतलब है कि लंबे समय तक इंतजार करना।
इस लेखक के आसपास अनेक लोगों ने इंटरनेट कनेक्शन लिये हैं। यह पता चलने पर कि यह लेखक हिंदी में ब्लाग लिखता है लोग यह आग्रह करते हैं कि ‘घर आकर इंटरनेट पर काम करना सिखाओ।’
कुछ लोगों ने अपने ईमेल तक नहीं बनाये। कहते हैं कि ‘फुरसत नहीं मिल पा रही। शाम को घर जाता हूं तो बच्चे काम करते हैं और छुट्टी के दिन मैं दूसरे काम करता हूं। किसी दिन घर आओ तो कुछ सीख लूंगा। इंटरनेट पर पर पढ़ने और समझने की इच्छा है।’
कंप्यूटर सीखे हुए बच्चे हैं पर उनको हिंदी टूलों और ब्लाग बनाने के बारे में नहीं पता। हां कई बार ऐसा प्रयास अंतर्जाल पर दिखाई देते हैं कि लोगों को ब्लाग बनाने के लिये प्रेरित किया जाये। मतलब उनके लिये आज के ब्लाग लेखक एक प्रयोक्ता है। सच तो यह है कि अनेक बड़े और प्रतिष्ठत लोगों से ब्लाग बनवाकर अखबारों और टीवी में प्रचार किया गया ताकि लोग इसकी तरफ आकर्षित हों। यह ठीक है मगर जमीनी स्तर का सच यह है कि यह संदेश भी जा रहा है कि केवल बड़े लोग ही ब्लाग बनायेंगे तो उसे कोई पढ़ेगा। कहीं कहीं सेमीनार होने की खबर तो आती है पर उससे नहीं लगता कि कोई हल निकल पायेगा।
अगर इंटरनेट विशेषज्ञ सोचते हैं कि इस देश में कभी साढ़े सात करोड़ लेखक ऐसे रहने वाले है जो कि कनेक्शनों के व्यय का भार उठाकर इसे चलायेंगे तो गलती पर है। इसके लिये पाठक ही हो सकते हैं जो कुछ नया और तत्काल पढ़ने केे लिये इसे जारी रख सकते हैं। यानि यह जरूरी नहीं कि ब्लाग लिखने के लिये लोग लायें तभी काम चलेगा बल्कि दरवाजे दरवाजे जाकर लोगों को इस तकनीकी की जानकारी देनी होगी कि किसी विषय पर नया तथा तत्काल पढ़ने और देखने के लिये उनको स्वयं भी हाथ अजमाना होंगे। यह कोई टीवी या रेडियो नहीं है कि बटन प्रारंभ किया और शुरु।
एक बात और अगर यह समझा जा रहा है कि यौन साईटें, साहित्य, फोटो और अन्य मनोरंजक सामग्रंी से ही इंटरनेट का रथ लंबा खिंचेगा तो यह भ्रम भी निकाल दें। अभी लोग टीवी और पत्र पत्रिकाओं पर ऐसी सामग्री से ऊब गये हैं इसलिये इस तरफ आकर्षित हो रहे हैं। बाद के दौर में लोग इसे एक अखबार और किताब के रूप में देखना चाहेंगे। अभी तो लोगों को इंटरनेट कनेक्शन पर सर्च इंजिनों तथा बेवसाईटों पर खोज के लिये प्रारम्भिक जानकारी देने के साथ हिंदी टूलों के लिये व्यक्तिगत रूप से बताना होगा। केवल इंटरनेट पर लिंक देने से काम नहीं चलने वाला। सबसे बड़ी बात यह है कि कई लोग ईमेल का उपयोग ही पूरी तरह सीख लें यह भी बहुत है। उनके आपसी संवाद हिंदी में हों यही बहुत है। जो हालत हैं उससे देखते हुए अभी हिंदी में एक लाख ब्लाग लेखकों के होने की संभावना तो है नहीं।
वह आम ब्लाग लेखक भाग्यशाली हैं जो हिंदी में लिख रहे हैं-अनेक इंटरनेट प्रयोक्ताओं की इस मामले में लाचारी देखकर यही कहा जा सकता है। टेलीफोन कंपनियां अगर उनको प्रयोक्ता मानकर भुलाना चाहती हैं तो अलग बात है पर यह लोग इंटरनेट को सामान्य प्रयोग की चीज बनाने में बहुत सहायक हो सकते हैं। इन लोगों ने जो सीखा है उसे वह बड़े बड़े साफ्टवेयर इंजीनियर भी नहीं जान पाये जो कंप्यूटर बेचने के व्यवसाय में हैं-या फिर सिखाने के लिये पेशेवर या गैरपेशेवर रूप से सक्रिय हैं। अगर टेलीफोन कंपनियां आज के सक्रिय ब्लाग लेखकों का उपयोग नहीं करना चाहती तो वह अपने यहां के कर्मचारियों को ही ब्लाग लिखने पढ़ने का प्रशिक्षण देकर हर शहर में ऐसे सेमीनार आयोजित करें जहां सभी आयु वर्ग के लोगों को प्रचार कर प्रशिक्षण के लिये बुलाया जायें। जिसमें हर प्रशिक्षु को अपने लक्ष्य के अनुसार प्रशिक्षण दिया जाये-आशय यह कि अगर कोई केवल पढ़ने और समझने के लिये ही इसे सीखना चाहता है तो उसे केवल ईमेल हिंदी में लिखने और हिंदी में पढ़ने के लिये सामग्री प्रदान करने वाली बेवसाईटों का पता दिया जाये और जो ब्लाग या बेवसाईटों पर लिखने का तरीका समझाया जाये।
पिछले अनेक दिनों से कई लोग इस लेखक से ऐसा आग्रह कर चुके हैं कि इंटरनेट पर काम करने का तरीका समझाओ। कई लोगों को सिखाया और कई इंतजार करते रहते हैं। बहरहाल इंटरनेट के कनेक्शन बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं पर उनको टीवी चैनलों और मोबाइल फोनों की तरह बिना प्रशिक्षण के लिये लंबे समय जारी नहीं रखा जा सकता क्योंकि इतने वर्षों बाद भी यह आम जीवन का हिस्सा नहीं बना। आखिर आप बताईये कि लोग किसी ब्लाग लेखक का इसलिये सम्मान नहीं करते कि वह कुछ लिख रहा है बल्कि लिखना जानता है यह सोचकर सम्मान करते हैं तब यह बात भी तो आती है कि उन्हें पढ़ना चाहिये। यह बिना प्रशिक्षण के संभव नहीं है। यही कारण है कि हिंदी भाषी क्षेत्रों में इतने सारे इंटरनेट कनेक्शन होते हुए भी हिंदी में पढ़ना लिखना लोगों की आदत नहीं बन पाया। यह इस लेखक का विचार है और यह जरूरी नहीं कि दूसरे लोग सहमत हों। इतना तो सभी मानेंगे कि अगर किसी घर में एक टीवी है तो चार लोग उसे देख सकते हैं पर इंटरनेट कनेक्शन के बारे में यह बात लागू नहीं होती और इसके लिये ही प्रयास करना चाहिये।
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यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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1 टिप्पणी:
एक सारगर्भित लेख के लिए आपको धन्यवाद।
एक आम नागरिक अगर अपने दैंनदिन कार्यों को ही इंटरनेट की सहायता से निपटाना शुरू कर दे तो बहुत अच्छा होगा।
तकनीक के प्रति एक तरह का हौव्वा तो हर समयखंड में रहा है।
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