संत ने कहा‘तुम क्या इसलिये ही इस आश्रम की सेवा करते हो?’
युवक ने पूरी ईमानदारी से कहा-हां, मेरा उद्देश्य तो यही है कि ढेर सारी संपत्ति आये। इसलिये ही सर्वशक्तिमान का दर्शन करने आपके यहां आता हूं। किराये का मकान है, पटरी पर सामान लगाकर बेचता हूं। पता नहीं नीली छतरी वाला मेरी कब सुनेगा?
संत ने कहा-‘चिंता मत करो। वह सभी को अवसर देता हैं।
युवक ने निराशा में कहा-‘पता नहीं कब सुनेगा?’
संत ने हंसकर कहा-‘जब तुम्हारे सामने अवसर आयेगा तो नीली छतरी वाला आवाज नहीं देगा। चुपचाप तुम्हारे लिये रास्ता खोलता जायेगा।’
युवक चला गया। समय ने पलटा खाया। वह अधिक धन कमाने लगा। वह इतना व्यस्त हो गया कि उसने आश्रम में जाना ही छोड़ दिया। कुछ बरस बाद वह एक दिन सुबह वैसे ही उस आश्रम पहुंचा और झाड़ू लगाने लगा।
संत ने उसे देखकर आश्चर्य जताया और कहा-‘क्या बात है? इतने बरसों बाद तुम यहां आये हो? सुना है कि बहुत बड़े सेठ बन गये हो।’
हां उसने कहा-‘बहुत धन कमाया। बच्चों की अच्छे घरों में शादी की। पैसे की कोई कमी नहीं। ढेर सारे रिश्ते बन गये हैं पर ऐसा लगता है कि सभी पैसे के लिये रिश्ता निभा रहे हैं। बहुत संपत्ति है पर दिल में चैन नहीं है। ऐसा लगता था कि यहां रोज मंदिर आता रहूं पर आ नहीं सका। आज तय किया कि यहीं आकर मुझे चैन मिल सकता है। वह धन दौलत तो बस दिखावा है। नीली छतरी वाले ने सब दिया पर जिंदगी का चैन नहीं दिया।
संत के कहा-‘पर तुमने वह उससे मांगा ही कब था। वैसे तुम भी तो सर्वशक्तिमान की इस आश्रम की सेवा धन मांगने के लिये कर रहे थे तो फिर दूसरों को क्यों दोष देते हो?जो तुमने मांगा था वह मिल गया। फिर अब फिर इस आश्रम की सेवा करने क्यों आ गये? करो, हो सकता है कि दिल चैन भी मिल जाये। हम तो तुम्हें न पहले रोकते थे न अब रोकेंगे। न पहले कुछ मांगा था न अब मांगेंगे।’
उसने उदास होते हुए उनके चरणों में माथा टेक दिया और कहा-‘अब कुछ मांगने के लिये यहां सेवा नहीं करूंगा। बस दिल को शांति मिल जाये।’
संत ने कहा-‘पहले यह तय करो कि कुछ मांगने के लिये आश्रम की सेवा नहीं करोगे या बदले में दिल की शांति चाहिये। सच तो यह है कि चाहे कुछ भी मांगने से मिल जाये पर दिल का चैन नहीं मिलता। इसलिये पहले वाले ही रास्ते पर चलो कि सेवा के बदले कुछ मांगना नहीं है।’
वह उदास भाव से संत को देखने लगा और फिर बोला-‘मुझे कुछ नहीं चाहिये। बस मुझे सेवा करने दीजिये।’
.................................
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिकालेखक संपादक-दीपक भारतदीप
1 टिप्पणी:
बहुत सुंदर कथा है। आंखे खोल देने वाली।
एक टिप्पणी भेजें