सोचा था किसी ने नहीं देखा
न ही सुना
तन्हाई में अपना दिल कुछ इसी तरह बहला रहे थे।
कुछ देर बाद
ऐसा लगा कि पर्दे के उस पार
कोई दोहरा रहा है वही गीत
उसके सुरों में जैसे बसा था संगीत
कोई चेहरा हमने नहीं देखा
पर था पर्दे के पीछे कोई साया
जिसके कान लगे थे हमारी आवाज पर
उसकी आंखों घूर रही थी हमें
बसा लिये जुबान पर हमारे शब्द
वह अब उसका दिल बहला रहे थे।
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पर्दे के पीछे छिपाए रहो चेहरा
बिठाये रखो हमारी नजर पर पहरा।
पर तुम देखते हो
हमारे शब्द सुनते हो
गुनते हो तुम उनको
तुम्हारी अदाओं को नहीं देखा
पहचान की खींची नहीं तुमने कोई रेखा
पर तुम्हारी सांसों और सुर से
निकलती हुई हवायें
पर्दे से बाहर आकर देती हैं तुम्हारा पता
सच तो यह है कि
तुम नहीं हो अब कोई राज गहरा।
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1 टिप्पणी:
पर्दे के पीछे छिपाए रहो चेहरा
बिठाये रखो हमारी नजर पर पहरा।
बहुत सुन्दर
आभार
मुम्बई टाईगर
हे प्रभु यह तेरापन्थ
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