कच्ची बस्तियों का उजड़ना
महलों का बसना
विकास कहलाता है।
मदारी करता समाजसेवा
बंदरों की जंगह
इंसान नचाकर
दिल बहलाता है।
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विज्ञापन महिमा-हिन्दी व्यंग्य कविता
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विज्ञापन से मूर्ख भी
विद्वान कहलाते हैं।
बिना जंग के
सिंहासन पास लाते हैं।
कहें दीपकबापू
पैसा कमाने के अलावा
किया नहीं जिन्होंने
चंद सिक्के बांटकर
वह भी महान बन जाते हैं।
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