25 फ़रवरी 2009

झूठे सपने ही बाजार में बिकते-व्यंग्य शायरी

जंगल में ढूंढने पर कहां मिलते
शहरों में कई जगह अब तो
बड़ी इमारतों के बाहर पत्थर के शेर दिखते।
पत्थरों के शहर अब भला फूल कहां खिलते
इसलिये ही बंद कमरों में कैक्टस पर लिखते।
बंद है लोगों की सोच के दरवाजे
कड़वा हो मीठा सच के पारखी नहीं मिलते
इसलिये कभी पूरे न हो सकें वह ख्वाब
और झूठे सपने ही बाजार में बिकते
................................

सच और ख्वाब में
बहुत फर्क नजर आता है
सच के साथ होने का अहसास
दिल को नहीं होता
ख्वाब कभी सच न भी हो
सोच कर ही दिल बहल जाता है

....................................
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिकालेखक संपादक-दीपक भारतदीप

1 टिप्पणी:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

दीपक जी,दोनों रचनाएं बहुत अच्छी लगी।

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

संबद्ध विशिष्ट पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकाएँ

वर्डप्रेस की संबद्ध अन्य पत्रिकायें