2 जून 2009

कौन किसको ठग रहा है-हास्य व्यंग्य (hasya vyangya in hindi)

‘एक के तीन’, और ‘दो के छह’ की आवाज कहीं भी सुन लें तो हम भारतीयों के कान खड़े हो जाते हैं यह सोचकर कि कहीं यह सच तो नहीं है कि हमारा रुपया तिगुना हो जायेगा।’
भले ही कोई एक रुपये की तीन माचिस या दो रुपये की पेन की छह रिफिल बेचने के लिये आवाज क्यों नहीं लगा रहा हो पर हम उसकी तरफ देखना जरूर चाहेंगे भले ही बाद में निराशा हो। अगर कोई वाकई रुपये तिगुने की बात कर रहा हो तो......................हर देखने वाले आदमी और औरत के मूंह में पानी जरूर आ जायेगा।
अगर सामान्य आदमी हुआ तो भी उस पर विश्वास करने का मन जरूर होगा। विचार करेंगे और और हो सकता है कि उसके बाद न करें। अगर उस सामान्य आदमी की ईमानदारी की सिफारिश कोई अपना मित्र या रिश्तेदार करे तो तब विश्वास करने की संभावना पचास से पचहत्तर और फिर सौ फीसदी हो जाती है। पुरुष हुआ तो एकाध प्रतिशत कम हो सकती है पर अगर महिला हुई तो सौ फीसदी अपना कदम उस ठगी की तरफ बढ़ा देती है जिसके बाद रोने के अलावा और कुछ नहीं रह जाता। आदमी द्वारा विश्वास करने की एकाध प्रतिशत संभावना इसलिये कम हो जाती है क्योंकि उसकी आंख में रोने के लिये गुंजायश कम होती है और अगर ठग जाने पर वह रोए तो लोग कहेंगे कि ‘कैसा मर्द है रोता है। अरे, ठग गया तो क्या? मर्द है फिर कमा लेना।’
औरत अगर ठग जाती है तो रोती है-उसे यह अधिकार प्रकृति से उपहार के रूप में मिला है। उसकी आंख में आंसुओं का खजाना होता है और रोने पर उसके साथ सहानुभूति जताने वाले भी उसे कम बिगड़ते जमाने को अधिक बुरा कहते हैं।
अगर ठगने वाला साधु हुआ तो? फिर तो पुरुष और स्त्रियों के लिये इस बात की बहुत कम ही संभावना है कि वह अपने को बचा पायेंगे। जिस व्यक्ति ने धर्म का प्रतीक बाना पहन लिया उसे सिद्ध मान लेना इस समाज की कमजोरी है और यही कारण है कि ठग इसी भेष में अधिक घूमा करते हैं।
सोना, चांदी, या रुपया कभी कोई तिगुना नहीं कर सकता यह सर्वमान्य तथ्य है और सर्वशक्तिमान से तो यह आशा करना भी बेकार है कि वह अपने किसी दलाल को ऐसी सिद्धि देगा कि वह माया को तिगुना कर देगा। सर्वशक्तिमान का माया पर बस नहीं है पर इसके बावजूद माया में भी ऐसी शक्ति नहीं कि वह अपने को तिगुना कर ले। माया की लोग निंदा करते हैं पर उसके भी उसूल हैं-वह असली सोना, चांदी और रुपये में बसती है और नकली से उसे भी नफरत है। माया को सर्वशक्तिमान से इतना डर नहीं लगता जितनी नकली माया से लगता है। सर्वशक्तिमान ने माया को नहीं बनाया पर फिर भी वह उसके बंदों के बनाये कानूनों के अनुसार ही रचे तत्वों में बसती है और जो उससे बाहर है उसमें वह नहीं जाती। मगर बंदों में भी कुछ ऐसे हैं जो नकली सोना, चांदी और रुपये बनाकर नकली माया खड़ी करते हैं। कहने का तात्पर्य है कि माया बहुत शक्तिशाली है पर इतनी नहीं कि वह अपने को तिगुना कर ले। अगर गले का हार एक तोले का है तो वह दो तोले का तभी होगा जब उसमें दूसरा सोना लगेगा। एक रुपया तभी दो होगा जब उसके साथ दूसरा असली जुड़ेगा। यह रुपया और सोना भी एक इंसान के द्वारा दूसरे को दिया जायेगा तभी बढ़ेगा। यह संभव नहीं है कि किसी बैंक में पड़ा रुपया किसी के घर बिना किसी लिये दिये पहुंच जाये।
मगर उस साधु ने लोगों को माता का चमत्कार बताया और रुपया और जेवर यह कहता हुआ लेता गया कि उसका वह तीन गुना कर देगा। लोग दौड़ पड़े। एक शहर से दूसरे शहर और फिर तीसरे और फिर चैथे...........इस तरह यह संख्या दस तक पहुंच गयी। लोग टेलीफोन के जरिये अपने परिचितों को संदेश भेजने लगे कि‘आओ भई, साथ में रुपया और जेवर लेकर आओ और तिगुना पाओ।’
साधु होने पर बिना पैसे खर्च किये अपना विज्ञापन हो जाना भी कोई आश्चर्य की बात नहीं है। हम लोग दावा करते है कि अपने देश में अखबार और टीवी चैनल से भारी जागरुकता आ रही है मगर ऐसे समाचार इस दावे की पोल खोल देते हैं। वह साधु पकड़ा गया और अब रोती हुई औरतों की सूरतें देखकर यह लगता है कि आखिर किसने किसको ठगा है? वह कहती हैं कि साधु ने ठगा है।’
साधु कहता है कि ‘मैने तो लोगों से कहा तो वह विश्वास करते गये।’
जो ठगे गये वह कहते हैं कि ‘साधु ने ठगा है’। क्या उनकी बात मान लें। साधु से तो कानून निपटेगा पर उन लोगों से कौन निपटेगा जो स्वयं अपने को ठगते गये। अगर उन्होंने साधु को पैसा दिया तो क्या उन्होंने सोचा कि रिजर्व बैंक द्वारा बनाये गये नोट बकायदा नंबर डालकर सतर्कता से जारी किये जाते हैं। वह बिना किसी इंसानी हाथ के इधर से उधर नही जा सकते फिर उस साधु के पास वह कैसे आयेंगे। आ सकते हैं पर वह नकली हो सकते हैं।
अब ठगे गये लोग रो रहे हैं। हमें भी बहुत रोना आ रहा था पर वह इस बात पर नहीं कि साधु ने उनको ठगा बल्कि उन्होंने स्वयं को ठगा। इस देश में ठगों की संख्या कम नहीं है। यह देश हमेशा ठगने के लिये तैयार बैठा रहता है। पहले आंकड़ों का सट्टा लगाकर अपढ़ और मजदूर को ठगा जाता था अब खेलों और रियल्टी शो पर सट्टा लगाकर पढ़े लिखे लोगों को ठगा जा रहा है।
मजे की बात यह है कि अनेक बर्बाद लोग इस बात को मानते हैं कि आजकल सभी जगह ठगी है मगर जेब में पैसा आते ही उनका दिमाग फिर जाता है और चल पड़ते हैं ठगे जाने के लिये यह सोचकर कि शायद दाव लग जाये।
हम सब यह देखते हुए सोचते है कि कौन किसको ठग रहा है। कोई ठग किसी सामान्य आदमी के साथ ठगी कर रहा है या आदमी खुद अपने आपको उसके समक्ष प्रस्तुत कर स्वयं को ठग रहा है।
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1 टिप्पणी:

Science Bloggers Association ने कहा…

सच तो यह है कि आदमी अपने आप को ही ठग रहा है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

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