30 जून 2009

अंतर्जाल का इश्क, आशिक और माशुका-हास्य व्यंग्य

आशिक और माशुका ने अपने प्यार के प्रचार के लिये एक ब्लाग संयुक्त ब्लाग इस आशा के साथ बनाया कि वह अगर हिट हो गया तो उससे उनको कमाई होगी जिसमें से पैसा जोड़कर अपना घर बसायेंगे। दोनों का संयुक्त ब्लाग था और उन्होंने तय कर रखा कि किसी दूसरे को टिप्पणी नहीं लिखने देंगे। इसी कारण उन्होंने टिप्पणी लिखने के विकल्प में ब्लाग लेखक ही दर्ज कर रखा था। सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था कि अनाम और छद्म ब्लाग लेखकों की नजर में यह सब आ गया। हुआ यूं कि दोनों ही अंतर्जाल पर जाकर दूसरों के ब्लाग पर भी व्यंग्यतात्मक टिप्पणियां लगाने लगे। अगर यह काम वह धर्मवादी ब्लाग पर करते तो ठीक था पर उन मासूम प्रेमियों ने नारीवादी और विकासवादी ब्लाग लेखकों के ब्लाग पर यह काम किया।
कहने को वह भले लोग थे पर जिस तरह उनका प्रेमपाठ और टिप्पण उस ब्लाग पर चल रहा था वह उनसे टिप्पणी प्राप्त ब्लाग लेखकों को सहन नहीं हुआ।
एक अनाम ब्लाग लेखक ने छद्म पुरुष का नाम लिखकर आशिक को समझाया-अरे, भई इससे तुम्हें कोई फायदा नहीं होगा? लोग तुम्हें कमाई कराना चाहते हैं। इसलिये अपने ब्लाग पर संवाद सभी के लिये खुला रखो।’
आशिक ने लिख भेजा-
‘ऐसी तैसी में गयी कमाई
रोज देखता हूं दूसरे ब्लाग पर
कमाई के हजार नुस्खे
पर किसी की जेब भरी नजर नहीं आई।
बड़ी मुश्किल से
कोई माशुका हाथ आई।
पता लगा कि जैसे ही खोली
सभी के लिये टिप्पणियों की खिड़की
ले उड़ा मेरी माशुका को कोई अनाम भाई।’

वह बिचारा हास्य कवि था। उस मासूम को पता ही नहीं था कि उसने क्या कर डाला था। अब तो अनाम ब्लाग लेखक को गुस्सा आ गया। उसने फौरन लड़की का छद्म नाम लिखकर लड़की को ऐसा ही संदेश भेजा।
लड़की को केवल टिप्पणी लिखना ही आती थी। उसने जवाब में लिख भेजा कि ‘कोई टिप्पणी नहीं।’
अब तो अनाम ब्लाग लेखक का पारा चढ़ गया। उसने फौरन एक दूसरे छद्म लेखक को संदेश भेजा कि-‘यह कैसे हो सकता है कि हम इतने पुराने लोेग और नये ब्लाग लेखकों में इतनी हिम्मत आ गयी कि वह हमारी सुन नहीं रहे। अपनी प्रतिष्ठा के लिये इनके प्रेम पाठ में खलल डालना ही होगा। दोनों की प्यार भरी बातों को पढ़कर लोग मजे ले रहे हैं और अपने ब्लाग फ्लाप होते जा रहे हैं।’
इधर छद्मनामधारी ब्लाग लेखक भी किसी नये अभियान के लिये तैयार बैठा था।
उसने लड़की का नाम लिखकर लड़के को प्यार से संदेश भेजा और कहा-‘अरे जनाब आप यह क्या कर रहे हैं। हम आपका अमर प्रेम देखकर बहुत खुश हैं पर इसका लाभ तभी है कि जब दूसरे लोग आपके ब्लाग पर अपनी बात रखें। आपने तो अपने प्रोफाइल में ही लिखा हुआ है कि आप अपने प्यार के प्रचार से कमाना चाहते हैं फिर यह टिप्पणी से पर्दा क्यों? आप बेफिक्र रहिये। मैं एक तकनीक विशेषज्ञ ब्लाग लेखिका हूं। अगर किसी ने एैसी वैसी हरकत की तो उसका आई पी पता निकालकर आपको दूंगी। उसका नाम अपने ब्लाग पर छाप दूंगी। आप डरिये नहीं।
आशिक जाल में फंस गया। उधर ऐसा ही संदेश उसी दूसरे छद्म ब्लाग लेखक ने माशुका को पुरुष नाम से भेजा। साथ में लिखा कि ‘मैं तुम्हें बहुत स्नेह करता हूं पर हां, यहां भाई या अंकल के संबोधन से नहीं पुकारा जाता यह बात ध्यान रखना।’
आशिक माशुक ने अपने ब्लाग को सार्वजनिक रूप से टिप्पणियों के लिये खोल दिया। ब्लाग पर आशिक कवितायें लिखता। कभी कभी वह अपनी माशुका के नाम से भी कवितायें लिख देता। टिप्पणियां अलबत्ता उसकी माशुका ही देती थी। हालत यह थी कि आशिक जो कवितायें माशुका द्वारा लिखी बताकर प्रकाशित करता उसं पर भी वह लिख देती थी कि‘तुमने यह लिखकर मेरा दिल मोह लिया है।’
मगर अनाम और छदम नाम ब्लाग लेखकों का चैन कहां? एक दिन आशिक को संबोधित करते हुए अनेक छद्मनाम ब्लाग लेखक ने लड़कियों की तरफ से टिप्पणियां लिख दी।
‘अरे, जानू तुम कहां हो? तुमने क्या इतने दिन से अपना ईमेल नहीं खोला? कितने संदेश भेज चुकी हूं। आज तुम्हारा यह नया ब्लाग मेरी नजर में आ गया। यह किसके साथ बनाया है? कौन चुड़ैल है? उसको मैं छोड़ूंगी नहीं।’

‘अरे, धोखेबाज? अब पता लगा कि इतने दिन से तुम कहां हो? अगर तुम्हें मेरे साथ आगे संपर्क बनाना पसंद नहीं है तो कोई बात नहीं! प्लीज मेरा ब्लाग मुझे लौटा दो। उस पर में अब लिखकर तुम्हारी यादों के सहारे जिंदा रहूंगी।’
इस तरह के अनेक संदेश थे। माशुका ने पढ़ा तो तमतमा गयी। उसने आशिक से कह दिया कि‘मेरी सहेली पहले ही कहती थी कि कभी इंटरनेट पर इश्क न लड़ाना। वहां तो बस धोखे ही धोखे है।’
माशुक ने लिखा-‘अरे, यह सब झूठ है। मैं पता कर रहा हूं कि यह कौन लोग हैं। निश्चित रूप से यह फर्जी नाम हैं। मैं इनका पता कर लूंगा। ब्लाग जगत में मेरे कुछ मित्र हैं जो इसमें मेरी मदद करेंगे।’
माशुका ने कहा-‘एक सप्ताह के अंदर अगर तुमने इसकी जांच पड़ताल कर रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की तो मुझे भूल जाना। यह बदमाशी किसने की है उनके नाम पते मेरे को बताना। उसका प्रमाणीकरण करने के बाद ही हमारे प्रेम पाठ और उस पर टिप्पणियों का क्रम दोबारा शुरु होगा। वरना गुड बाय!
आशिक ने सोचा कि दोस्त मदद करेंगे। दोस्त के नाम पर भी उसके पास वही अनाम और छद्मनाम ब्लाग लेखक थे। उसने उनको ईमेल किया और अपनी दुर्दशा बयान की।
उसका ईमेल मिलते ही दोनों अपने घरों से एक दूसरे से मिलने भागे। इतनी तेज भागे कि रास्ते में टकरा कर गिर पड़े। वहां भीड़ जमा हो गयी कि पता नहीं यह हादसा कैसे हो गया। वह उठ खड़े हुए और लोगों को अपने पास से हटाते हुए बोले-‘हटो! क्या कभी ब्लागर नहीं देखा।’
उस दिन दोनों ने बैठकर शराब खाने में दारु पी। दारु के महंगी होने से लेकर बरसात न होने पर चिंतायें जाहिर की। इतने विषयों पर चर्चा की पर यह विषय भूल गये। अपनी चर्चा की अपने ब्लाग पर रिपोर्ट भी लिखी पर इस विषय को छूआ भी नहीं।
अनाम ब्लाग लेखक ने अगले दिन आशिक को इ्र्रमेल किया और लिखा‘तुम चिंता मत करो। हम उनका पता लगा रहे हैं। यह कौन लोग हैं जो तुम्हारे अमर प्रेम को शैशवास्था में ही नरक भेजने पर तुले हैं। हमने अपने से अधिक जानकार लोगों को सब बताया है। वह जल्दी रिपोर्ट करेंगे।
छद्म ब्लाग लेखक ने भी लिखा-‘अरे, तुम्हारे विरोधियों को नहीं मालुम किससे टक्कर ले रहे हैं? बस मैंने अपने एक दोस्त को लिखा है वह पता कर लेगा।’
दोनों का जवाब एक जैसा देखकर आशिक का माथा ठनका। इससे पहले तो दोनों ने यह आश्वासन दिया था कि वह स्वयं ही पता लगा लेने में सक्षम हैं पर अब दोनेां अपना दायित्व ऐसे लोगों पर डाल रहे थे जिनको वह जानता तक नहीं था।
इस तरह छह दिन हो गये। वह हर दिन कसमें देकर अनाम और छद्म नाम ब्लाग लेखकों को संदेश भेजता कि‘आज किसी तरह मेरा काम कर दो। बस अब कम दिन बचे हैं।’
सातवें दिन माशुका के अल्टीमेटम समाप्त होने के एक घंटे पहले अनाम ब्लाग लेखक का संदेश उस आशिक के पास आया-‘मेरे दोस्त ने कहा है कि इस तरह का पता लगाने के लिये व्यवसायिक संस्थायें हैं पर उसके लिये कुछ पैसा खर्च करना पड़ेगा।’
लगभग ऐसा ही जवाब छद्मनाम ब्लाग लेखक ने भी भेजा। हताश आशिक ब्लाग लेखक ने अपने ब्लाग पर यह कविता लिखी।
पता नहीं कैसे वह घड़ी आयी
जब मैंने वाह वाह सुनने के लिये
अपने ब्लाग पर टिप्पणी की खिड़की खुलवायी।
कभी कभी वहां से झांकती
कोई चिड़िया चहकी
पर मेरी माशुका की तरह नहीं महकी
फिर किस पर क्या फिदा होते
सूरत उसकी नजर न आई।
जिनके नाम नहीं है वह अनाम
अंदर क्या आते
जो अंदर थी चिड़िया वही
छोड़कर निकल गयी
हे ब्लाग बनाने वाले तू ने
यह टिप्पणी वाली खिड़की क्यों बनाई।’

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सातवां दिन भी बीत गया। तब तैश में आकर उसने अनाम और छद्मब्लाग नामधारी ब्लाग लेखकों को लानत भेजी। इससे वह और नाराज हो गये। तब इधर उधर हाथ मारकर देखा तो पाया कि वह लड़की और कोई नहीं उनका ही एक विरोधी छद्म ब्लाग लेखक था। अनाम ब्लाग लेखक ने तत्काल उठाकर उस कवि को यह संदेश भेजा-‘महाराज, लो यह पता कर लिया। वह लड़की थी ही नहीं जिसके चक्कर में तुम हमें लानत भेज रहे हो। हम तुम्हें बता रहे हैं यह उस ब्लाग लेखक की करतूत है जिससे हम भी बहुत चिढ़ते हो। तुम उस पर व्यंग्य कवितायें लिखो हम टिप्पणियां कर उसे रौशन करेंगे।’
मगर हास्य कवि चुप बैठ गया। उसने सोचा कि ‘अगर वह तीसरा भी कोई अनाम या छद्म ब्लाग लेखक होगा तो क्या फायदा? इससे तो अच्छा है अकेले बैठकर सिर धुनते रहें‘दोस्त दोस्त ना रहा, प्यार प्यार न रहा।’
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नोट-यह व्यंग्य काल्पनिक है तथा इसका किसी धटना या व्यक्ति से कोई लेना देना नहीं है। अगर किसी की कारिस्तानी से मेल खा जाये तो वही इसके लिये जिम्मेदार होगा।
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