16 जून 2013

रविवार कि व्यवसायिक प्रचार वार-हिन्दी व्यंग्य चिंत्तन (ravivar ki vyavasayik war-hindi vyangya chinttan)



       आधुनिक व्यापार और प्रचार जगत में रविवार एक तरह से व्यवसायिक वार बन गया है।  भले ही सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के साथ ही अधिकतर संगठित व्यवसायिक तथा औद्योगिक  क्षेत्रों में रविवार को अवकाश रहता है पर उपभोक्ता वस्तुओं के विक्रय केंद्रों में इस दिन लोगों की भारी  भीड़ रहती है।  इसके साथ ही प्रचार माध्यमों पर भी दर्शकों का तांता लगा रहता है। घर में रखे टीवी हों या बाज़ार के फिल्म दर्शन केंद्र दर्शकों का समूह उनके पर्दों को निहारता है।  यही कारण है कि शनिवार शाम से लेकर रविवार रात्रि तक अपने व्यवसायिक  हित साधनो वाले व्यवसायी अपने उत्पादों तथा गतिविधियों को आम लोगों की आंखों में चमकाने के लिये प्रचार माध्यमों में अपने विज्ञापन प्रस्तुत करने के लिये आतुर रहते हैं। आम लोगोें की आंखों तथा कान के माध्यम से वह उनके दिमाग में प्रवेश कर उसकी जेब ढीली करने का प्रयास करते हैं।
     हमने यह भी देखा है कि यह काम केवल प्रत्यक्ष व्यवसायी ही नहीं करते बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से आमलोगों की नज़रों में बने रखने के लिये ऐसे लोग भी करते हैं जिनका काम समाज सेवा करना है।  यह तो पता नहीं विदेशों में किस तरह इस रविवार का उपयोग प्रचार दिवस के रूप में होता है या नहीं पर भारत में इसका प्रयास अभी हाल ही में शुरु हुआ है।  राजनीतिक, आर्थिक, कला, पत्रकारिता तथा फिल्म के क्षेत्रों से जुड़े लोगों ने रविवार को आत्म प्रचार के लिये जिस तरह रविवार का दिन चुनना शुरु किया है वह अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान उनके प्रबंधकर्ताओं के कौशल से प्रेरित हुआ लगता है।  अन्ना हजारे ने लंबे समय तक अनशन किया पर शुक्रवार शाम से रविवार शाम तक उनके प्रबंधक इस तरह विषयों का संचालन करते थे कि उनका आंदोलन पूरे दो दिन तक टीवी के पर्दे पर छाया रहता था।  अन्ना हजारे साहब के आंदोलन का परिणाम क्या हुआ, यह अलग से विचार का विषय है पर प्रचार में बने रहने के लिये उनसे जुड़े प्रबंधकों ने जो कार्यशैली अपनाई उसका अनुकरण अब राजनीतिक, आर्थिक, तथा कला से जुड़े लोग कर रहे हैं।  आज का रविवार तो अत्यंत दिलचस्प निकला। एक साथ तीन तीन बड़े राजनीतिक दलों ने क्रम से पर्दे पर अपने अपने शिखर पुरुषों को इस तरह बनाये रखा कि उनके प्रसारण में आपसी टकराव न हो भले ही दलीय रूप से उनमें प्रतिद्वंद्वता हो। इस दौरान एक टीवी उद्घोषक ने इस बार पर हैरानी जताई कि आज रविवार के दिन ही क्या योजनापूर्वक यह सब किया जा रहा है?
  हमें उसके इस मासूम प्रश्न पर हंसी आ गयी। अभी यह प्रयास अधिक दिख रहे हों पर ऐसा पहले हो चुका है।  हालांकि लोकप्रियता के आधार पर अपना काम करने वाले सभी क्षेत्रों के लोगों के ऐसे  प्रयास भी पश्चिम से प्रेरित है।  हमने यह देखा है कि पश्चिमी देशों ने अनेक ऐसी घटनाओं को शनिवार और रविवार के दिन इस तरह प्रस्तुत किया जिससे उनका प्रचार अधिक हो।   भारत में संभवतः अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद ही                                               
यह बड़ी शिद्दत के साथ शुरु हुआ। दरअसल जब अन्ना हजारे का आंदोलन थमता था तो प्रचार माध्यमों के प्रबंधकों के साथ समस्या आती थी कि इस तरह का कोई दूसरा घटनाक्रम कब आये जब उनके विज्ञापन का समय सहजता से लंबे समय तक बीत सके।  इधर यह भी देखने में आया कि कुछ संगठन अपने आंदोलनों का दिन भी शनिवार और रविवार को ही चुनते हैं। तय बात है कि जिन लोगों का स्वाभाविक कर्म ही प्रचार के सहारे हैं उन्हें भी यह प्रेरणा मिली होगी कि वह अपने घटनाक्रमों को शनिवार तथा रविवार के दिन योजनापूर्वक बनायें।  यह बुरा प्रयास नहीं है क्योंकि जागरुक लोगों को सामान्य दिनों में घर आकर टीवी खोलने से पहले आराम के दौर से निकलना पड़ता है।  अवकाश के दौरान वह निंरतर जुड़े रहते हैं जिससे उन्हें प्रभावित किया जा सकता है। 
      आज रविवार के दिन शिखर पुरुषों की तीन अलग अलग पत्रकार वार्ताओं के समय इस तरह चुने गये कि एक दूसरे के साथ टकरायें नहीं। देश में अभी लोकसभा चुनावों में एक वर्ष का समय है पर राजनीतिक वातावरण में गर्मी अभी से आ गयी है।  स्वाभाविक रूप से जिन लोगों को अगले चुनावों में सक्रिय भागीदारी करना है वह प्रचार में निरंतर बने रहने के लिये प्रयास करेंगे।  चुनाव लड़ना कोई सरल काम नहीं है।  अकेले पैसा खर्च कर भी चुनाव जीतना संभव नहीं है। इससे पहले आम लोगों में अपनी सक्रियता  दिखानी पड़ती है।  अपने आप को सभ्य तथा सतर्क व्यक्ति साबित करना होता है। यह काम प्रचार से ही संभव है। वह भी एक या दो दिन  बल्कि वर्ष दो वर्ष कभी तीन वर्ष भी इसमें लग सकते हैं।
          इधर हमने क्रिकेट मैचों में भी यह देखा है कि जब किसी प्रतियोगिता में बीसीसीआई की टीम तथा पाकिस्तान आमने सामने होते हैं तब दिन ऐसा ही चुना जाता है कि भारत में अवकाश हो।  यह माना जाता है बीसीसीआई की टीम तथा पाकिस्तान का मैच सबसे महंगा होता है।  अभी चैंपियन ट्राफी में दोनों का मैच शनिवार को हुआ।  इस मैच का महत्व एकदम खत्म हो चुका था। पाकिस्तान की टीम पहले ही अगले दौर से बाहर हो चुकी थी और बीसीसीआई की टीम सभी मैच जीतकर सेमीफायनल के लिये योग्यता प्राप्त कर चुकी थी।  टीवी चैनलों ने इसे महामुकाबला बताने का प्रयास भी नहीं किया।  इस पर बरसात के कारण टुकड़ो टुकड़ों में यह मैचा खेला गया।  मैच छोटा था बड़ा होता तो भी बीसीसीआई का दल ही  जीतता।  दरअसल पाकिस्तान की टीम जितने बुरे दौर में उतना ही आकर्षक रूप बीसीसीआई की टीम का है। बहरहाल मुकाबला आकर्षक नहीं था। खेल भी कोई आकर्षक नहीं हुआ।  जीत भी आकर्षक नहीं रही।  सच बात तो यह है कि पाकिस्तान की टीम का प्रदर्शन इस प्रतियोगिता में इतना निम्न स्तरीय रहा है कि बीसीसीआई की टीम अगर पाकिस्तान से हारती तो शक शुबहे में आ जाती।  वैसे इस प्रतियोगिता में जाने से पहले बीसीसीआई की टीम अत्यंत संदेहों के साथ लेकर गयी है जो निंरतर जीतों से दूर हो गया लगता है पर अगर पाकिस्तान से हारती तो फिर वहीं फिक्सिंग का भूत उसके सामने आ जाता। बहरहाल रविवार को व्यवसायिक वार बना दिया गया है तो उसे बुरा भी नहीं कहा जा सकता।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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