पत्थर से बनी दरबार में सभी जाकर, अपने इष्ट का कान
बजायें।
‘दीपकबापू’ पाखंडियों की भीड़ में, सत्य वचन न कभी फरमायें।।
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जाम पीकर सोते रात में, प्रातः दिन की चिंताओं
में जागे।
‘दीपकबापू‘ अपनी तलाश में, इंसान इधर से उधर
भागे।।
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शराब पिलायें हथियार दिलायें, सौदागर दौलत की दुनियां
बसायें।
‘दीपकबापू’ कातिलों से रखें रिश्ते, अपनी ताकत का प्रचार
करायें।।
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बड़े पद
से ऊंचे कहलायें लोग, हाथ के पसीने से नहीं बने पहचान।
‘दीपकबापू’ मदारी बने इतराये, नाच रहा बंदर समझते
अपनी शान।।
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धर्म के प्रतीक जब व्यापार बने, तब कमाई के खंबे
भी ऊंचे तने।
‘दीपकबापू’ योग से हों पसीना, माया से साधना के
भी साधन घने।।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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