3 नवंबर 2015

विकास के पत्थर-हिन्दी क्षणिका(Vikas ke Patthar-Hindi Short poem)


हमने स्वयं ही
विकास के पत्थर
सड़क पर पसराये हैं।
कहें दीपकबापू
कहीं चाहरदीवारों के
सिर पर चढ़ेंगे
कहीं इंसानों पर पड़ेंगे
दौलत के खेल में
शौहरत मोहब्बत के बीच
दीवार बनाते हुए
दिल टूट गया
अब क्यों पछतायें हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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