7 मार्च 2008

यह जीवन का सफर है-हिन्दी शायरी

कभी पाँव ऊंचा पर
तो कभी खाई में
जीवन का सफर है
चलता जा रहा हूँ अपने रास्ते
वक्त नहीं गंवाता जगहंसाई में

कहने को लोग कुछ भी कहेंगे
करो या न हंसो वह हँसेंगे
घोडे को गधा और और सियार को शेर समझेंगे
चलता जा रहा हूँ
किसी को सुनने में नहीं दिलचस्पी
सब जगह लोगों का मन लगता है
छोड़ किसी की भलाई में
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