2 मई 2010

खोखली धरा पर महल-हिन्दी क्षणिकायें (khokhli dhara par mahal-hindi kshanikaen)

नैतिकता का पैमाना कितना भी नीचे जाये,
काले धन के कुऐं से नीचे नहीं गिरेगा,
जहां धरती पर लहरा नही फसल
किसान के परिश्रम और लगन से
वहां इंसानियत का सच दिखेगा।
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सफेदपोशों ने कर लिया दौलत के कुओं पर कब्जा,
गरीब और मजदूर प्यासे रह गये,
मेहनतकश कर ले तसल्ली एक समय की रोटी से
पर लुटेरों के पेट नहीं करते कभी
बड़े बड़े विद्वान यह कह गये।
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दूसरे की दौलत देखकर मचलना नहीं
कई अमीरों के खोखली धरा पर महल खड़े है।
जब तक नज़र न आये उनका गिरा चरित्र
तभी तक भी वह ज़माने में बड़े हैं।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com

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