9 दिसंबर 2010

विकिलीक्स के संस्थापक की गिरफ्तारी-हिन्दी लेख (detaining of wikileeas modretor-hindi article)

विकिलीक्स का संस्थापक जूलियन असांजे को अंततः लंदन में गिरफ्तार कर लिया गया। जैसे ही उसके ब्रिटेन में होने की जानकारी जग जाहिर हुई तभी यह अनुमान लगा कि उसकी आज़ादी अब चंद घंटे की है। वह जिस कथित सम्राज्यवादी अमेरिका से पंगा ले रहा था उसका सहयोगी ब्रिटेन उसे नहीं पकड़ेगा इसकी संभावना तो वैसे भी नगण्य थी पर अगर वह किसी अन्य देश में भी होता तो पता मिलने पर उसे गिरफ्तार होना ही था। मतलब यह कि वह अज्ञातवास में रहकर ही बचा रह सकता था।
इस दुनियां के सारे देश अमेरिका से डरते हैं। एक ही संभावना असांजे की आज़ादी को बचा सकती थी वह यह कि क्यूबा में वह अपना ठिकाना बना लेता। जहां तक अमेरिका की ताकत का सवाल है तो अब कई संदेह होने लगे हैं। कोई भी देश अमेरिका से पंगा नहीं लेना चाहता। अब इसे क्या समझा जाये? सभी उसके उपनिवेश हैं? इसका सहजता से उत्तर दिया जा सकता है कि ‘हां,।’
मगर हम इसे अगर दूसरे ढंग से सोचे तो ऐसा भी लगता है कि अमेरिका स्वयं भी कोई स्वतंत्र देश नहीं है। अमेरिका स्वयं ही दुनियां भर के पूंजीपतियों, अपराधियों तथा कलाकर्मियों (?) का उपनिवेश देश है जो चाहते हैं कि वहां उनकी सपंत्ति, धन तथा परिवार की सुरक्षा होती रहे ताकि वह अपने अपने देशों की प्रजा पर दिल, दिमाग तथा देह पर राज्य कर धन जुटाते रहें। चाहे रूस हो या चीन चाहे फ्रांस हो, कोई भी देश अमेरिकी विरोधी को अपने यहां टिकने नहीं दे सकता। जब ताकतवर और अमीर देशों के यह हाल है तो विकासशील देशों का क्या कहा जा सकता है जिनके शिखर पुरुष पूरी तरह से अमेरिका के आसरे हैं।
वैसे तो कहा जाता है कि अमेरिका मानवतावाद, लोकतंत्र तथा स्वतंत्र अभिव्यक्ति का सबसे ताकतवर ठेकेदार है पर दूसरा यह भी सच है कि दुनियां भर के क्रूरतम शासक उसकी कृपा से अपने पदों पर बैठ सके हैं। ईदी अमीन हो या सद्दाम हुसैन या खुमैनी सभी उसके ऐसे मोहरे रहे हैं जो बाद में उसके विरोधी हो गये। ओसामा बिन लादेन के अमेरिकी संपर्कों की चर्चा कम ही होती है पर कहने वाले तो कहते हैं कि वह पूर्व राष्ट्रपति परिवार का -जो हथियारों कंपनियों से जुड़ा है-व्यवसायिक साझाीदार भी रहा है। शक यूं भी होता है कि उसके मरने या बचने के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी अमेरिका नहीं देता यह कहते हुए कि उसके पास नहीं है। जिस तरह अमेरिका की ताकत है उसे देखते हुए यह बात संदेहजनक लगती है कि उसे लादेन का पता नहीं है। स्पष्टतः कहीं न कहीं अपने हथियार नियमित रूप से बेचने के लिये वह उसका नाम जिंदा रखना चाहता है। इस बहाने अपने हथियारों का अफगानिस्तान में गाहे बगाहे प्रयोग कर विश्व बाज़ार में वह अपनी धाक भी जमाता रहता है। उसके कई विमान, टैंक, मिसाइल तथा अन्य हथियारों का नाम वहीं प्रयोग करने पर ही प्रचार में आता है जो अन्य देश बाद में खरीदते हैं।
जूलियन असांजे की विकीलीक्स से जो जानकारियां आईं वह हमारे अनुमानों का पुष्टि करने वाली तो थीं पर नयी नहीं थी। इस पर अनेक लोगों को संदेह था कि यह सब फिक्सिंग की तहत हो रहा है। अब असांजे की गिरफ्तारी से यह तो पुष्टि होती है कि वह स्वतंत्र रूप से सक्रिय था। असांजे मूलतः आस्ट्रेलिया का रहने वाला हैकर है। वह प्रोग्रामिंग में महारथ हासिल कर चुका है मगर जिस तरह उसने विकीलीक्स का संचालन किया उससे एक बात तो तय हो गयी कि आने वाले समय में इंटरनेट अपनी भूमिका व्यापक रूप से निभाएगा। अलबत्ता दुनियां भर में गोपनीयता कानून बने हुए हैं जो उसके लिये संकट होगा। गोपनीयता कानूनों पर बहस होना चाहिए। दरअसल अब गोपनीय कानून भ्रष्ट, मूर्ख, निक्कमे तथा अपराध प्रवृत्ति के राज्य से जुड़े पदाधिकारियों के लिये सुरक्षा कवच का काम कर रहे हैं-ईमानदार अधिकारियों को उसकी जरूरत भी नहीं महसूस होती। फिर आजकल के तकनीकी युग में गोपनीय क्या रह गया है?
मान लीजिये किसी ने ताज़महल की आकाशीय लोकेशन बनाकर सेफ में बंद कर दी। उसे किसी छाप दिया तो कहें कि उसने गोपनीय दस्तावेज चुराया है। आप ही बताईये कि ताज़महल की लोकेशन क्या अब गोपनीय रह गयी है। अजी, छोड़िये अपना घर ही गोपनीय नहीं रहा। हमने गूगल से अपने घर की छत देखी थी। अगर कोई नाराज हो जाये तो तत्काल गूगल से जाकर हमारे घर की लोकेशन उठाकर हमारी छत पर पत्थर-बम लिखते हुए डर लगता है-गिरा सकता है। सीधी सी बात है कि गोपनीयता का मतलब अब वह नहीं रहा जो परंपरागत रूप से लिया जाता है। फिर अमेरिका की विदेश मंत्राणी कह रही हैं कि उसमें हमारी बातचीत देश की रणनीति का हिस्सा नहीं है तब फिर गोपनीयता का प्रश्न ही कहां रहा?
बहरहाल अब देखें आगे क्या होता है? असांजे ने जो कर दिखाया है वह इंटरनेट लेखकों के लिये प्रेरणादायक बन सकता है। सच बात तो यह है कि उसकी लड़ाई केवल अमेरिका से नहीं थी जैसा कि कुछ लोग मानते हैं। दरअसल विश्व उदारीकरण के चलते पूंजी, अपराध तथा अन्य आकर्षक क्षेत्रों के लोग अब समूह बनाकर या गिरोहबंद होकर काम करने लगे हैं। मूर्ख टाईप लोगों को वह बुत बनाकर आगे कर देते हैं और पीछे डोरे की तरह उनको नचाते हैं। अमेरिका के रणनीतिकारों की बातें सुनकर हंसी अधिक आती है। यहां यह भी बता दें कि उनमें से कई बातें पहले ही कहीं न कहीं प्रचार माध्यमों में आती रहीं हैं। ऐसा लगता है कि दुनियां भर के संगठित प्रचार माध्यम जो ताकतवर समूहों के हाथ में है इस भय से ग्रसित हैं कि कहीं इंटरनेट के स्वतंत्र लेखक उनको चुनौती न देने लगें इसलिये ही असांजे जूलियन को सबक सिखाने का निर्णय लिया गया है। यही कारण है कि एक स्वतंत्र अभिव्यक्ति के मसीहा अमेरिका की शहर पर दूसरे मसीहा ब्रिटेन में उसे गिरफ्तार किया गया। अमेरिका को उसका मोस्ट वांटेड उसे कितनी जल्दी मिल गया यह भी चर्चा का विषय है खास तौर से तब जब उसने एक भी गोली नहीं दागी हो। जहां तक उसके प्रति सदाशयता का प्रश्न है तो भारत के हर विचारधारा का रचनाकार उसके प्रति अपना सद्भाव दिखायेगा-कम से कम अभी तक तो यही लगता है। हमारे जैसे आम और मामूली आदमी के लिये केवल बैठकर तमाशा देखने के कुछ और करने का चारा भी तो नहीं होता।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com

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